Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त ।
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[ २२५ मर्मरकी मूर्ति है । लेख नं० २०१ मारवाड़ी भाषा में है कि सन् १५८० में शेन वीरमलजी व अन्योंने स्थापितकी (४३) इसी वेदीमें एक छोटी संगमर्मरकी मूर्ति- इस पर भी माड़वाडी लेख नं ० २०२ है । इसे सन् १४८६ में अगुशाजी जोगड़ने स्थापितकी ।
इस हातेके द्वारपर दोनों तरफ दो द्वारपाल हैं जो ६ फुट ऊंचे हैं । मंदिर के बाहर श्री गोमटस्वामीके ठीक सामने एक ब्रह्मदेवका स्तंभ है, ऊपर ६ फुट ऊंचा आलासा है जिसमें बैठे आसन ब्रह्मदेव या क्षेत्रपालकी मूर्ति श्री गोमटस्वामी के सामने है | नीचे चामुंडरायकी माता गुछकायजीकी मूर्ति है । इन दोनोंके निर्मापक राजा चामुंडराय हैं-
विध्यगिरिपर अन्य जिन मंदिर |
(१) सिद्धरवस्ती - एक छोटा मंदिर है जिसमें यहां पल्पंकासन मूर्ति सिद्धकी ३ फुट ऊंची विराजित है । दोनो ओर दो सुन्दर लेख सहित स्तम्भ हैं- प्रत्येक ६ फुट ऊंचा है-अच्छी कारीगरी हैं । एक खंभेपर लेस नं० २५४ (१०५ ) है यह जैन गुरु पंडिताचार्यका स्मारक है जिनका स्वर्गवास सन् १३९८ में हुआ । इस प्रशस्तिका लेखक संस्कृत कवि अर्हदासनी हैं। नीचे इस
में एक शिखर सहित आला है जिसमें एक जैन गुरु एक ओर विराजमान हैं। दूसरी ओर उनका शिष्य बैठा है जिसको गुरु शिक्षा दे रहे हैं । दूसरा आला है उसमें पल्यंकासन जैन मूर्ति अंकित है । दूसरे खंभे पर लेख नं० २९८ (१०८) है जिसमें जैन गुरु श्रुतमुनिका समाधिमरणका स्मारक है जो सन् १४९२ में हुआ । इस प्रशस्तिका लेखक संस्कृतकवि मंगराज है ।