Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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१९४] प्राचीन जैन समारक। देशीगण पुस्तकगच्छके हन्सोगेके बाहुबलि मलधारी देवके शिष्य पद्मनंदी भट्टारक देवने वसतीके लिये सम्पत्ति दानकी (पूर्वावस्थामें)
(३५) नं० १२३ ता० १३८४ ई०, ग्राम खन्दुरमें जैन वसतीके एक पाषाण पर मूल संघ कुंद देशी० पुस्तक ग० इंग्लेश्वरवली के अभयचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती देवके शिष्य श्रतमुनि उनके शिष्य प्रभेन्दु उनके शिष्य श्रुतकीर्ति देवका समाधिमरण हुआ उनकी स्मृतिमें उनके शिष्य आदिदेवमुनिके उपदेशसे जैनियोंने श्री सुमतिनाथ तीर्थकर की मूर्तिस्थापितकी व चैत्यालयका जीर्णोद्धार कराया।
(३६) ता० कृष्णराज पेट-नं० ३ ता० ११२५ ई० । होसहललु ग्राममें श्री पार्श्वनाथ वस्तीके दक्षिण एक पाषाण पर | जब दोर समुद्रमें वीर गंग होतालदेव, ९६००० गंगवाडीको लेकर राज्य कर रहे थे तब पोयसाल सेठी व नाम नोलवी सेठी श्रीशुभचन्द्र सिद्धांतदेवके शिष्य थे। उसके पुत्र देवीकव्वे सेठीने त्रिकूटाचल जिनालय बनवाया और उसे मूलसं० कुन्द० देशी० ग० पु. ग०के श्री कुक्कुटासन मलधारिदेवके शिष्य श्रीशुभचंद्रके सुपुर्द कर दिया । व ग्राम अईनहल्ली दिया । गौड नारायणसेठी पुत्र वेहनायकने भी भूमिदान की।
(३७) नं० ३६ ता० ११४७ ई० । कम्ममवाड़ी ग्राम जिनेन्द्र वस्तीके सामने मानस्तंभपर | जब दोर समुद्रमें नरसिंहदेव राज्य करते थे तब महामंत्री हरगड़े शिव राजा थे। उस समय सोमस्याने माणिक्य दोलावेके जिनालयके लिये दान किया।
(३८) ता० नागमंडल-नं० १९ ता० १११८ ई. ? कम्बडहल्लीमें कम्बोदिराय स्तंभपर । सुराष्ट्रगणमें मुनि अनन्तवीर्य थे।