Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
मदरास व मसूर प्रान्त । [१९५ उनके चरण राजाओं द्वारा पूज्य थे। इनके पुत्र सिद्धांती प्रभाचंद थे। इनके शिष्य कलनेने देव थे। उनके पुत्र अष्टोपवासी मुनि थे। उनके शिष्य विद्वान हेमनंदी मुनि थे । उनके मुख्य शिष्य विनयनंदी यति थे उनके पुत्र एकवीर थे जिनके धर्मकी महिमा इतनी प्रसिद्ध थी कि उनको जंगमतीर्थ कहते थे इनके छोटे भाई पल्लपंडित थे जो व्याकरणमें बहुत प्रसिद्ध थे। यह बड़े दानी भी थे। इसलिये उनको अभिमानिदानी और पाल्यकीर्तिदेव कहते थे । उस समय महामंडलेश्वर त्रिभुवनमल्ल तालकाडके लेनेवाले वीर गंग होयसाल देव राज्य कर रहे थे। इनके बड़े मंत्री मुख्य दंडपायक गंगराजाने विन्दीगण विले पवित्र स्थानके लिये महाराज विष्णुवर्द्धनसे भूमि मांगी तब महारानने दान की। उसी भूमिको गंगराजाने मूल सं० कुंद० देशी ग० पुस्तक ग० के शुभचंद्र सिद्धांतदेवके चरण धोकर दान की। ___(३९) नं० २० ता० ११६७ ई० ग्राम साम, जैन वस्तीके रंग मंडपके खंभेपर । पवित्र गंगवंशमें प्रसिद्ध नेमदंडेश व भार्या मुद्दरसीके पुत्र राजा पार्श्वदेवने विन्दीगण जिलेमें जैन मंदिर जीर्णोद्धार किया और व्रती व छात्रोंके अध्ययनार्थ मूलसं० कुन्द. देशी ग० पुस्तक गच्छके पवित्र होनसगेके मुनि महाराजके चरण धोकर भूमि दान की।
(४०) नं० २९ ता. १२१८ ई० । ग्राम ललनकेरी, ईश्वर मंदिरके द्वारकी दाहनी भीतपर । यादव वंशमें जिन शासनके भक्त, सासकपूरको जीवनदाता, जिनेन्द्र व जिनगुरुका सेवक प्रसिद्ध साल राना हुआ। उसका पुत्र विनयदित्य था, उसका पुत्र एरवंग था,