Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
मदरास व मैसूर प्रान्त ।
[ २०५
(२) ग्राम - ता० चामराज पाटन - हासन से पूर्व ७ मील । शिलालेखसे प्रगट है कि इस ग्रामको होयसाल महाराज विष्णुवर्द्धनकी महारानी जिनभक्त शांतलादेवीने १२वीं शताब्दी में स्थापित करके शांतिग्राम नाम दिया था ।
(३) हलेविड - ता० वेल्लूर - यहांसे पूर्व ११ मील । इसीको दोर समुद्र कहते थे । यहां किसी समय ७२० जैन मंदिर थे, अब तीन मंदिर स्थित हैं (१) श्री आदिनाथ ( २ ) श्रीशांतिनाथका (३) श्री पार्श्वनाथका जो सबसे बड़ा है। यहां पार्श्वनाथजीकी मूर्ति कायोत्सर्ग बहुत बड़ी व मनोहर है ।
श्रवणबेलगोला - ता० चामराज पाटन - यहांसे ८ मील । Imperial Gezetter ( 1908) इम्पीरियल गजटियर मैसूर में इस भांति हाल दिया है। दक्षिण भारत में यह जैनियोंका मुख्य स्थान है | चंद्रवेट्ट पर्वतपर श्रीभद्रबाहुका परलोकवास एक गुफामें हुआ है । महाराज चंद्रगुप्त मौर्य इन ही भद्रबाहुके शिष्य साधु होगए थे । प्राचीन शिलालेखोंसे यह बात सिद्ध है । महाराज चन्द्रगुप्तका पोता यहां आया था और वर्तमानका नगर उस हीका बसाया हुआ है । पर्वतपर सबसे प्राचीन मंदिर चन्द्रगुप्त वस्ती है। इस मंदिर के भीतर दरवाजों में जो ख़ुदाई की हुई है उसमें श्रीभद्रबाहु और महाराज चन्द्रगुप्त संबंधी ९० चित्र बने हुए हैं परन्तु ये शायद १२वीं शताब्दी की खुदाई हो । श्रीगोमटस्वामी की बृहद मूर्तिका निर्माता अरिहनेमि था । मूर्ति के नीचेके लेखसे प्रगट है कि चारों तरफका घेरा होयसाल राजा विष्णुवर्द्धन के सेनापति गंगराजाने सन् १९१६ में बनवाया था । यह मूर्ति बहुत कालतक ध्यानमग्न निश्चल साधुकी अध्या
I