Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
२०६] प्राचीन जैन स्मारक । त्मिक सुन्दरताको झलकाती है। जांघोंके ऊपर इस मूर्तिके लिये कोई आलम्बन नहीं है। बहुतसे राजवंशोंने यहांकी रक्षा की है। टीपू सुलतानने बहुतसे हक छीन लिये थे । (Mysore Vol. I by Rice) नाम पुस्तकमें विशेष यह है कि जैनियोंका प्रभाव राज्य दरबारमें इतना प्रबल था कि विजयनगरके वुक्करायके समयमें कुछ अजैनोंसे झगड़ा हो गया था तब उनसे मेल होने व जैनियोंके हकोंकी रक्षाकी स्मृतिकी पाषाण यहां श्रवणबेलगोलामें व दूसरा मगडी ता० के कलपाल स्थान में स्थापित किया गया था।
श्रवणबेलगोलामें नो शिलालेख हैं उनका वर्णन
Epigraphica carnatica Vol. II (1923) Revised inscriptions of Sravanbelgola by Rao . Bahadur Narsingacharya M. A. Director of Archeology, Mysore नामकी पुस्तकमें दिया हुआ है। उसको देखकर नीचेका वर्णन लिखा जाता है:____यहां अबतक ५०० शिलालेख नकल किये गए हैं-जो सन् ई० ६०० से सन् १८८९ तकके हैं। यहां नितने जैन मंदिर हैं उनमें सबसे बढ़िया द्राविड़ ढंगकी कारीगरीका मंदिर श्री शांतिनाथ महाराजका जिननाथपुरमें है। मैसूर राज्यके सब जैन मंदिरोंसे बहुत बढ़िया कारीगरी है ।
ये सब शिलालेख जैन धर्म सम्बन्धी हैं। शिलालेखोंमें प्रसिद्ध कवि सज्जनोत्तंस अहंदास और मंगरायके नाम हैं।
इन लेखोंमें सबसे बढ़िया कामका नं० १ है जिसमें श्री भद्रबाहु और चन्द्रगुप्तका उल्लेख है। नं०५४ का बहुत ही उपयोगी है जिसमें जैन वंशावली है तथा नं० १०५ व १०८ व अन्योंसे जैन साहित्यका ज्ञान होता है। इन लेखोंसे गंगवंशी राजाओंके