Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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प्राचीन जैन स्मारक ।
(१६) नं० १८१ ता. ११७३ ई० ग्राम कुलगणमें माचप्पन वासव गौड़के खेतमें पाषाणपर । त्रिभुवनमल्ल वीरगंग वीर वल्लालदेवके राज्यमें इडईनादके सब कृषकोंने कुलगणके जिनमंदिरके लिये महामंडलाचार्य पांडिराज देवर उदेयरके शिप्य संगानदेवको दान किया।
(१७) नं० १८४ ता० १४८६ ई० हरवे ग्राममें श्रीआदीश्वर वस्तीके दक्षिण मंडपमें निषीधिका या समाधिमरण स्थान देवरसकी ज्येष्ठ स्त्री सोमायीका ।
(१८) नं० १८५ सन् १४८२ ई० । ऊपरके आदीश्वर वस्तोके हातेके दक्षिण पूर्व शासनमंडपके खंभेपर । महामंडलेश्वर वीर सोमराय ओडयरके हिसाबके मंत्री देवारसने एक जिन चैत्यालय तथा एक सविपाकघर हरवेमें बनवाया और श्री आदिनाथ भगवानको स्थापित किया । और चारों वर्णोको दान वटा करे इसलिये सरोवरके नीचेका पड्डीका खेत दान किया । उसके पुत्र नंजेराय वोडेयरमें १३०० सूखी भूमि व घर खरीदा और वस्तीके लिये यत्न किया । तथा चंदप्पाने भी भूमि और बाग वस्तीको दिया ।
(१९) नं० १८९ ता० १४८२ ई०हरवेग्राममें शिवलिंगपाके खेत के दक्षिण हरवेके देवप्पाके पुत्र चंदप्पाने श्रीआदिनाथकी सेवार्थ व चारों वर्णोको दानके लिये भूमि दान की। ___ (२०) तालुका गुंडलूपेट-नं० १८ ता० १८२८ ई. । ग्राम केलासुर, जैन वस्तीकी भीतरी भीतपर। मैसूरके अत्रेय गोत्री चाम राजाके पुत्र कृष्णराजाने श्री वत्सगोत्रके शांति पंडितके पुत्रकी प्रार्थनापर केलासुरके चैत्यालयमें श्री चंद्रप्रभु जैन तीर्थकरकी मूर्ति