Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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प्राचीन जैन स्मारक |
(१२) ता० सीरा - नं० ३२० ता० १२७७ ई० ।
अमरापुरमें-सरोवर के सामने एक पाषाणपर । भाव यह है-जत्र त्रिभुवनमल चौल पृथ्वी निधिगुलमें राज्य कर रहा था, तैलनगरके जगमल के ब्रह्म जिनालय में श्रीप्रसन्न पार्श्वनाथको भक्तिके लिये मूलसंघी देशी कुंद० पुस्तकगच्छ इंग्लेश्वरबलीके मुनि त्रिभुवनकीर्ति रौलके मुख्य शिष्य मुनेि वालेन्दुमलधारीके गृहस्थ शिष्य मल्लिसेठीने जो वोम्बीसेठी और मेलव्वेका पुत्र था दान किये।
(१३) ता० पमगोडा-नं० १२ ता० १२३२ ई० । गज्जनादुमें अंजनेय मंदिरके पीछे एक पाषाणपर। जब चौल इरूंगलदेव राज्य कर रहे थे तब उसके नीचे कार्यकर्ता गंगेयनायक और चामाके पुत्र गंगयेन मारेयने वीरनंदि मि० च० मलधारीदेव पुस्तकगच्छ वानदवलियके शिप्य पद्मप्रभ मलधारीदेवके शिष्य नेमी पंडिलसे व्रत लिये और बदर सरोवर के दक्षिण कालंजन के शिखर पर श्री पार्श्वनाथ वस्ती बनवाई और इरुगलदेव राजाकी आज्ञासे भूमि दान दी ।
(४) मैमूर जिला - सन् १९०१ में यहां जेनी २००३ थे व लिंगायत १७३००० थे ।
(१) चामराज नगर ता० चाम० नन्जनगुड रेलवे स्टेशनसे दक्षिण पूर्व २२ मील ।
प्राचीन नाम अरकोत्तर, यहां एक जैनमंदिर सन् १९१७में होयसाल राजा विष्णुवर्द्धन सेनापति पुनिसराजाने बनवाया था । यह नगर मैसूरसे ३६ मील है । यहां जैनी ११ ४ थे 1
(२) तळकाड - मैसूरनगर से २८
मील
दक्षिण पूर्व ता०