Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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विहिदेवको ३८ वी देशी ग
वने अपनी स
मदरास व मैमूर प्रान्त। [१७१ श्रीमान् चालुक्यवंशी भूवल्लभराय परमादीदेवके राज्यमें उनके सेवक होसाल नरसिंह भृप थे, उनके सेवक हुलियरपुरके राजा विहिदेव सामंत थे । यह सामंत चत्ता और शांतलदेवीके पुत्र थे। इनकी उपाधि वीरतल प्रहारी थी क्योंकि विहिदेवने चालुक्य अहवमल्लके डेरेमें दोधूकको मार डाला था। राजा नरसिंहने इस विहिदेवको यह ग्राम हेमगिरि दिया । ____ यहां मूलसंघी देशी ग० कुद० पुस्तकगच्छके मुनि चंद्रायणदेवके शिष्य महा सामंत गोतीदेवने अपनी स्त्री महादेवी नामकीर्तिकी स्मृतिमें श्रीचन्नपाचे जिनालय बनवाया। इसकी पूजाके लिये सांतलदेवीके पुत्र सामंत विहिदेवने श्री माणिक्यनंदि सि० देवके शिष्य श्री गुणचंद्र मि० देवके चरण धोकर भूमि दान की।
(नं. ९) नं० २२ ता० १५७९ ई०, ऊपर लिखित पाषाणपर महामंडलेश्वर श्रीपती रानाके पुत्र राजप्पदेव महा अरसू उनके पुत्र वल्लभराजदेव महा अरमने हेग्गले जैन वस्तीके जीर्णोद्धारके लिये, जहां वह राज्य करता था, नगरनादमें होयसाल महाराजके ग्रामसिनेको जो बुडिहलेमें था, दान किया --
महारानने स्वीकार किया-----
(१०) नं० २३ ता: ११६३ ई., वहीं दूसरे पाषाणपर मूलसंधी पुस्तकगच्छीय माणिक्य सिद्धांतदेवके शिप्य मेघचन्द्र भट्टारकदेवने समाधिमरण किया ।
(११) नं० २४ ता० १२९७ ई०, वहीं, जीमरे पाषाणपर मूलसंघी त्रिभुवनकीर्ति रौलके शिष्य मलधारी बालचन्द्र रौलके पुत्र चन्द्रकीर्तिने समाधिमरण किया ।