Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
१७४ ]
प्राचीन जैन स्मारक |
'पंडित कहते थे। जब चिक्कदेव राजा हंगलमें नजरबन्द था तब इसने राजाको सच्चा प्रेम दिखलाया था। जब वह सन १६७२ में गद्दीपर "बैठा तब उसने विशालाक्षको अपना मंत्री नियत किया । शिलालेखइस जिलेके शिलालेख एपिग्रैफिका करनाटिका जिल्द तीसरी व चौथीमें जो दिये हुए हैं उनमें से जैन सम्बंधी लेख नीचे प्रकार हैंजिल्द तीसरी में कुल शिलालेख ८०३ मैमूर जिलेके पूर्वीय तालुकोंके हैं वे इस भांति हैं(१) गंगवंशके
६१ सन् १०३ से लेकर १०२२ तक
१०० ७ से
१११३ तक
१३४९ तक
१७०४ तक
१८६३ तक
(२) चोलवंशके
(३) होयसाल वंशके (४) विजयनगर राज्य के (५) मैसूर राज्य के
३१
२२०., १६७,
९२
97
शेषमें मुख्य समय नहीं है ।
नीचे लिखे लेख जैन सम्बन्धी हैं । मुख्य हैं
"
१११७ से
१३५८ से
१६१६ से
(१) ता० नन्जनगुड नं० ११० शाका २५ सन् १०३ ई० गंगवंशी । इसका भाव यह है कि यह लेख प्रथम गंगराजा कोंगणीधर्मा धर्म महाराजाधिराज सम्बन्धी है । इनके गुरु सिंहनंदि मुनि थे जो राजाको कड़प जिलेके पेरूर स्थानपर मिले थे। उस स्थानको अब भी गंगपेरूर कहते हैं ।
सं० नोट- यह लेख इस बातका बहुत बड़ा प्रमाण है कि सन् १०३में मुनि सिंहनंदि तथा गंगवंश जैनधर्मानुयायी था । (२) ताम्रपत्र नं० १२२ शाका १६९ सन् २४७ यह गंगवंशी तीसरे राजा हरिवर्मा सम्बन्धी है ।