Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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१७८] प्राचीन जैन स्मारक । और अल्लाम्बाके पुत्र नरोत्तमश्रीने दान किया । त्रिजन्मंगलम् चैत्यालयको जिसे पेरूमलदेवरस और परमीदेवरसने जो इस हल्लहल्लीमें राज्य करते थे बनवाया था। परमेश्वर चैत्यालयका इन्होंने जीर्णोद्धार किया तथा भूमि दी थी।
(१४) ता. मलबल्ली ग्राम हागलहल्ली तेलकी मिलके पास । नं० ४८ शाका १५२१ (सन् १६९९ ई०) श्री मुनि आदिनाथ पंडितदेव मूलसंघ तित्रियकगच्छीयके शिष्य एक तेलवणिकने जैनमंदिर बनवाया था उसके लिये दीपकके लिये तेल पाषाणकी नेलचक्कीसे देनेका लेख ।
(१५) ता० मैमूर-नं० ६ सन् ७५० ई० ग्राम बलबट्टेमें वासवेश्वर मंदिरकी पश्चिम तरफ । श्री महापुरुष गोवपय्याने गंगराजा श्रीपुरुषसे भूमिदान प्राप्त की। उनहीका समाधिमरण हुआ।
(१६) नं० २५ सन् ७५० ई० । गंगवंशी श्रीपुरुष महाराजनके राज्यमें अरहिके पुत्र सिंगमने निनदीक्षा धारण की (मुनिहुए)। उसकी माता अरहिटीको कोडलूरके माडिओडेने भूमि दान की। ___(१७) नं० ३१ सन् १००० कुम्मरहल्ली ग्राममें वासवगुड़ीकी दक्षिण भीतपर । इसमें श्रीमुनि अजितसेन पंडितके शिष्यका सम्बन्ध है।
(१८) नं० ४० सन् ९८० ई० । बसेण ग्राममें वाप्रवमुड़ीके सामने एक स्तंभपर एक जैन यतिका समाधिमरण हुआ।
___ (१९) ता. श्रीरंगपट्टम-नं० १४४ सन् १४२३. वस्तीपुरामें ग्रामकी हद्दकी चट्टानपर मूलसंघ, कारगण, तितिनीगच्छके मुनि श्रीवासपूज्यदेवके शिष्य सकलचंद्रदेवके तपकी प्रशंसा है।