Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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१६८] प्राचीन जैन स्मारक । ध्वंश जैन मंदिरके एक ताम्रपत्रपर । इसका भाव यह है कि गंगवंशी कोंगनीवर्मा धर्ममहाराजाधिराजने श्रीविग्यकीर्ति मुनिके उपदेशसे मूलसंधी चन्द्रनंदि व अन्यों द्वारा स्थापित श्री उन्नूर अहंत मंदिरको करिकुंड विषयमें वन्नेलकरणी ग्राम दिया तथा पेरूर रावनी आदिगल अहंत मंदिरकी बाहरी करके कारकापण (द्रव्य) का चौथाई भाग दिया।
(२) नं० ७३ ता० ३७० ई० के अनुमान ऊपरके स्थान पर पाए हुए एक ताम्रपत्रपर । इसका भाव यह है कि गंगवंशी श्रीमाधववर्मा महाराजाधिराजने आचार्य वीरदेवके उपदेवासे मुदकन्तुर विषयके पेरव्वोलल ग्राममें मृलसंघ द्वारा निर्मित अहत मंदिरको कुमारपेर ग्राम व मरोवरकी भृमि दान की। ता. चिकबल्लपुर
(३) नं० २९ ता० ७५० ई० यहां नंदी ग्राममें गोपीनाथ पहाड़ीपर गोपालस्वामी मंदिरके पास एक चट्टानपर लेख है। प्रथम श्रीऋषभदेवकी स्तुति है फिर यह भाव है कि दशरथके पुत्र रामचंद्रने श्री अर्हत्का चतन्यभवन बनवाया। इसका जीर्णोद्धार पांड्य राजाकी कुंतीदेवीने किया । यहां जैन साधुओंके तप करनेके लिये गुफाएं हैं।
(३) तुमकर जिला--यहां सन् १८९१ में १९५६ जैनी थे।
एपीग्रेफिका करनाटिका निल्द १२ वीं में यहां नीचे लिग्वे जैन शिलालेख पाए गए हैं।
(१) तालुका तुमकूर-नं० ३८ ता० ११६० ई०। ।
पंडितरहल्ली ग्राममें-मंदगिरि वस्तीके भीतर एक पाषाणमें लेख है उसका भाव यह है कि दोर समुद्रके वीरमंग होयसाल