Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त । सन् १५३४ तक स्थिर रक्खा । इनहीमें अनंग भीमदेव ( सन् ११७५से १२००) बड़ा राजा हुआ है इसने जगन्नाथजीका मंदिर बनवाया। कलिंगदेशका एक राजा चोलगंग सीलोनमें सन् ११९६में राज्य कर रहा था ।
__ चालुक्यवंशी राजा-चालुक्य लोग कहते हैं कि ये अयोध्यासे आकर दक्षिणमें वसे, ५वीं शताब्दीमें वे इस मैसूरसे पश्चिम उत्तरमें प्रगट हुए। इन्होंने राष्ट्रकूटोंको दबाया किन्तु पल्लवोंने इनको रोक दिया । छठी शताब्दीमें चालुक्य राजा पुलकेशीने पल्लवोंसे बातापी ( बादामी) ले लिया और वहां अपनी राज्यधानी स्थापित की । इसके पुत्रने कोकणमें राज्य करनेवाले मौर्योको तथा वनवासीके कादम्बोंको हटा दिया । दूसरे पुत्रने कलचूरियोंको भी जीत लिया। पुलकेशी द्वि०ने सातवीं शताब्दीमें गंगोंसे मेल कर लिया तब गंगवंशी राजा मुष्कर राज्य करता था। धाड़वाड़ जिलेके लक्ष्मेश्वर स्थान या पुलिगेरीपर एक जैन मंदिर उसके (पुलकेशी द्वि० के नामसे बनाया गया था । ' सन् ६१७के करीब चालुक्योंकी दो शाखाएं होगईं। पूर्वीय चालुक्योंने कृष्णा जिलेमें वेंगी अपनी राज्यधानी बनाई । पीछेसे उनकी राज्यधानी राजमहेन्द्री होगई । पश्चिमीय चालुक्य बातापीसे राज्य करते२ फिर कल्याणी (निनाम)में राज्य करने लगे। इन वातापीके राजाओंको सत्यरायवंशी लिखा है । इस शाखाका प्रथम राजा पुलिकेसिन बड़ा विनयी था । इसने खास विनय उत्तर भारतमें सबसे बलिष्ठ राजा हर्षवर्द्धन कन्नौजवालेपर प्राप्त की थी। इस विजयसे इसको परमेश्वरकी उपाधि प्राप्त हुई थी। हर्षवर्धन और