Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [१६१ जैनसमाज- यह बहुत प्राचीन जाति है। मैसुर और दक्षिण कनड़ामें ये १२वीं शताब्दी तक बहुत प्रसिद्ध रहे। चोल और पांड्य देशमें व उत्तर कनड़ामें भी ये बहुत प्राचीन कालसे रहते थे। सबसे प्राचीन कनड़ी और तामील भाषाका साहित्य जैनाचार्यों द्वारा संकलित है । उन भाषाओंकी उन्नति जैनियोंसे हुई है।
जैनियोंके मुख्य केन्द्र मसूरमें तीन हैं--- (१) श्रवणवेलगोला जिला हासनमें (२) मलेयूर नि० मैसूरमें
(३) हमस नि० शिमोगामें श्रवणबेलगोला मठके सम्बंध नीचे लिखे आचार्य प्रसिद्ध हुए हैं---
नाम आचार्य नाम पूजक राजा समय (१) श्री कुंदकंदाचार्य पांड्य राजा (२) मिहांताचार्य वीर पांडव (३) अमलकीाचार्य कुण पांडव (४) नेमिचन्द्र सिद्धांतदेव चामुंडराय सन् ९८३ (२) मोमनन्याचा विनयदित्य होयमाल सन् १०५० (६) त्रिदाम विभुधनन्धाचार्य (७) प्रभा-चन्द्र सिहांताचार्य राजाएरयंग ,, १०९० (८) गुणभद्राचार्य बल्लालराय
,, ११०२ (२) शुभचंद्राचार्य विट्टिदेव
सन् १११७रे इस मठमें जितने गुरु हुए हैं उनको चारुकीर्ति पंडिताचार्य कहते हैं। सब राजाओंने प्रायः मठको भेटें की हैं
(२) मलेयूर मठ-यह अब श्रवणबेलगोलाके आधीन है ।
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