Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर पान्त। [१४९ (१७) नीतिमार्ग प्रथम मरुलनन्निय गंग ८९३ से ९१५ (१८) एरयप्पा महेन्द्रांतक
९२१ से ९३० (१९) बुटुग, गंग, गंगेय
९३० से ९६३ (२०) मारसिंह, नोलम्बकुलतिलक ९६३ से ९७४ (२१) राचमल्ल द्वि०
९७४ से ९८४ (२२) राक्षसगंग-गोविंदराज
९८४ से ९९६ (२३) गंगराजा
९९६ से १००४ नोट-इस गंगवंशकी नामावली बंबई स्मारकमें पृ० १२८में दी हुई है उससे इसमें कुछ ही फर्क है । जिस समय सिंहनंदीने गंगवंशपर कृपा की उससमय मैसुरमें जैन जनता बहुत संख्यामें होगी। दुदिग या किरिया माधव प्रथम बहुत विद्वान थे व राज्यनीतिमें कुशल थे। इन्होंने दत्तक सूत्रपर एक टीका लिखी थी (नोटइसका पता लगाना योग्य है ।) इसके पुत्र हरिवर्माने अपनी राज्यधानी तलकांडपर स्थापित की।
अविनीत राजाने पुनाउ १००००में जैनियोंको भूमि दान दी थी। दुर्विनीतके गुरु शब्दावतारके कर्ता आचार्य पूज्यपाद थे। इन्होंने भैरवीकी किरातार्जुनीयपर एक वृत्ति लिखी है । श्रीपुरुषने बहुत कालतक राज्य किया । इनके राज्यको श्रीराज्य कहते थे। इन्होंने मान्यपुर (नेलमंगल ता०में मौने) पर अपनी राज्यधानी स्थापित की थी। इस राजाने कादुवतीको विजय किया, पल्लव राजाको पकड़ लिया व परमानन्द्रीकी उपाधि कांचीके महाराजसे प्राप्त की । इसने वाण राज्यको फिरसे दृढ़ किया और हस्तिमल्लको राज्यपर विठाया। इसने हाथियों के कामोंपर एक गजशास्त्र नामका