Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [१०९ नं. ६८-इसकी रक्षा टिनइकलत्तार करते हैं। नं० ६९- ,, , पोकोंडुके करनत्तार करते हैं।
नं० ७०-मूर्तिको आर्य्यनंदीने प्रतिष्ठित कराया । नरसिंग मंगलम्के साहाकी रक्षामें ।
नं. ७१-यह इयक्कर यक्षकी मूर्ति है जिसे तेंकलवलीनादके सालियम पांडीने बनवाया।
नं० ७२-इस मूर्तिको वेन्पुग्इनाडुके पेन्पुरईको सरदन अरयदनने स्थापित किया।
नं० ७३ इस मूर्तिको....मल्लवासी.....सोमीने स्थापित किया।
नं० ७४ वेन्वईक्कुडी नाडुके ग्राम वेन्वइक्कुडीके वेट्टनजेरीके एवियम् पुडीने इस मूर्तिको स्थापित किया ।
(२) पमुमलई-मदुरा शहरसे दक्षिण २ मील यह छोटी पहाड़ी है । स्थलपुराणमें कहा है कि यहां जैनोंका निवास था ।
(३) त्रिपुरनकुनरम--मदुरासे दक्षिण पश्चिम ४ मोल ।
इसकी भी यात्रा हमने ता० १६ मार्च १९२६ को की। पर्वतके नीचे बड़ा ग्राम बसता है । एक बड़ा शिवका मंदिर है तथा धर्मशाला है । पर्वत बहुत विशाल है । ऊपर मुसलमानोंकी मप्तजिद है उसके कुछ नीचे एक बहुत बड़ी शिला है, उसके नीचे पानी भरा रहता है। पानीसे १८फुट उपर दक्षिणकी तरफ पर्वतके आधी दूर जाकर दो आले ग्बुदे हुए हैं जो २॥ फुट लंबे व १ फुट चौड़े हैं । यह पानीसे १८ फुट उंचे हैं। इनमें दो दिगम्बर जैन मूर्तियां अंकित हैं।
(१) कायोत्सर्ग १॥ हाथ ऊंची अगल बगल दो यक्ष, उपर कई देव विमान सहित, नीचे दो भक्त बैटे हैं।