Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [१२५ चंद्रनाथ नीका मंदिर व कारकलका मंदिर सन् १३३४ में बने थे । तुलुवादेशके जैनियोंकी सबसे बढ़िया कारीगरी कारकलके पास हेलियान गडीपर जो जैन मंदिर व स्तम्भ हैं उनमें देखने योग्य है । गुरुवयंकरका जैन मंदिर बहुत बढ़िया है । हेलियनगडीका स्तम्भ ३३ फुट लाम्बा एक ही पाषाण है। बारकर जैन राजाओंको प्राचीन राज्यधानी थी। यहां खंडित जैन मूर्तियां बहुत मिलती हैं।
अब भी मैन लोग इधरके जैन और हिन्दू मंदिरोंके मनेनर हैं।
जैनधर्म - यह बात पूर्ण विश्वास करनी चाहिये कि महारान अशोकके समय में भी नैनधर्म कनड़ामें फैला हुआ था। नलोग केरलपुत्र राज्यतक फैले थे। प्राचीन कादम्बवंशी बनवासीलो और चालुक्य वंशी मिन्होंने पल्लवों के पीछे तुलुवामें राज्य किया निःसंदेह जैन थे तथा यह भी बहुत संभव है कि प्राचीन पल्लव भी जैन थे । कयों के पल'सक या हालसी (बेलगाम जिला) में जो जैन मंदिर है वह पत्र वंशीगनाका बनवाया हुआ है।
"bia ly Killumla: of Banevasi and chalukyas who succeeded Pallavas aj overlords of Tulsvik were undoubtedly Juin and it is probable that curly Plavas werr the same."
पिछले कादम्ब कशी लोग जिन्होंने आठवीं शताब्दी के अनुमान ब्रह्मों को बुलाया था न हों या न हों । सन् ९७० और १०३२ के मध्य एक मुसल्मान लेखक अलवरुनी हो गया है, वह लिखता है कि मलाबारके लोग समणेर या जैन थे । आज जनोंकी (मन् १८९४ साउथकनड़ा गजटियर) वस्ती उड़पी, मंगलोर व उप्पिनन्गुड़ी तालुकोंमें १०००० होगी। कनड़ाके जैन सब दिगम्बर हैं । दक्षिण कनड़ाके जैनोंके दो भाग हैं (१) इन्द्र (२)