Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त । [८१ सेठी मारि अम्मनके मंदिरमें एक कनड़ी भाषाका लेख राजा महेन्द्रका सन् ८७८ ई०का है (नं. ३०७ सन् १९०१) तथा इस ही महेन्द्रका दूसरा लेख मल्लिकार्जुन मंदिरके मण्डपके एक स्तम्भपर सन् (७३ का है। यह लेख कहता है कि तगदूरमें श्री मंगल सेठके पुत्र निधिपन्ना और चंदिपन्ना दो भाइयोंने जैन वस्ती अर्थात् मंदिरका निर्माण कराया । निधिपन्नाने राजा महेन्द्रसे मूलशल्लो ग्राम लेकर श्री विनयसेन आचार्यके शिष्य कनकसेनकी सेवामें वस्तीके जीर्णोद्धारके लिये अर्पण किया तथा अय्यप्पदेवने स्वयं इस वस्तीको बुदुगुरु ग्राम अर्पण किया तथा मारि अम्मन मंदिरका सन् ८७८का लेख कहता है कि राना महेन्द्रने मरुन्दनेरी नामका सरोवर किमो शिव गुरुको मेट किया था तथा तगदूरके वणिकोंने एक जैन वस्ती बनाई थी तथा मालपर कुछ कर देवदानके रूपमें बांधा था। यह बात जानने योग्य है कि नौमी शताब्दीमें जैन और शिवमत दोनों साथ साथ उन्नतिपर थे । नालम्ब गनाओंके अधिकारमें धर्मपुरी बहुत उन्नतिपर थी। अब यहां जैन वरतीके स्मारक नहीं मिलते हैं।
(२) सालेमनगर-यहां पुराने कलेक्टरके बंगले के सामने एक जैन मूर्ति बैटे आसन है जिसको लोक तलइ वेट्टी मुनि अप्पन कहते हैं और उसके सामने बकरोंकी बली होती है। दुसरी एक जैन मूर्ति नदीके तटपर है।
(३) आदमत कतई-धर्मपुरीसे दक्षिण पश्चिम ५ मील चार वीरकुलके आगे एक जैन मंदिर है। इसके पास श्रवणबेलगुलकी श्रीगोमट्टस्वामीकी बड़ी मूर्तिके समान एक खड़े आसन नग्न बड़ी मूर्ति है। उसके आसनपर लेख भी है उसकी जांच होनी चाहिये।