Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त |
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श्री आदिनाथजीकी पद्मासन मूर्ति है व अच्छी नकाशी है। मंदिरके बाहर एक गहरा कूप है। कहते हैं इसे भीम पांडवने बनवाया था।
(२) करूर - ता० करूर । यह एक बहुत प्राचीन जगह है । होलिमी कहते हैं कि सन् ११० में यह चीरा राज्यकी राज्यधानी थी । प्राचीन तामील नाम करूर का तिरूवानिलाई ( पवित्र गोशाला ) है ।
(३) वस्तीपुरम् - ता० कोल्छेगाल । यहांसे १ मील दक्षिण । यह प्राचीन कालमें जैनियोंका नगर था। पीछे छोड़ दिया गया । अभी भी यह एक जैनमूर्ति है । पुराने जैनमंदिरके पाषाण कावेरी नदीपर शिवसमुद्रम् पास पुल बनाने के काममें ले लिये गए ।
(४) एरोडनगर - मदराससे २४३ मील। यहां दो प्राचीन मंदिर हैं जिनमें तामील और ग्रन्थ अक्षरोंमें बहुतसे लेख हैं ।
(५) पोल्लोची नगर - ता० पोछोची- यहां बादशाह आगस्टस और टाइवरियस के सिक्के मिलते हैं । प्रसिद्ध समाधि स्थान व पाषाणके घेरे हैं उनमें से कई भीतर से खोलकर देखे गए। ये १० से ४५ फुट व्यासके घेरे में हैं । भीतर मनुष्य खोपड़ी व हड्डी मिट्टी के व्रर्तन व शस्त्र ५ से ७ फुट लम्बे मिले हैं। तीन बिजोरकी मूर्तियें मर्द व स्त्रीकी इतिहाससे पूर्वकी हैं ।
(६) त्रिमूर्ति कोविल - उदमलपेट से दक्षिण पश्चिम ११ मील । पुंडीसे पूर्व दक्षिण २ | मील | यह ग्राम अनमलई पहाड़ी पर है जो समुद्र से २००० फुट ऊंची है । एक पाषाणका बना छत्र है । उसके पास आठ पाषाणकी जैन मूर्ति विरानमान हैं ।
(१) मदरास एपिग्राफी दफ्तर में नीचे लिखे चित्रादि हैं - विजयमंगलम् के जैन मंदिरके गोपुरके द्वारकी छन का नकशा नं० सी २०१