Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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प्राचीन जैन स्मारक । भ्राता पन्नारकल्लीने सन् १५० तक राज्य किया। तामील पेरियपुराणम्के अनुसार एक चोल राजकुमारीने पांडव राजाके साथ विवाह किया। यह राजा जैनी था । रामकुमारी शिवभक्त थी। राजकुमारीने शिवालीके शिवसाधु तिरुज्ञान सम्बन्धरकी सहायतासे राजाको शिवभक्त कर लिया।
चालुक्योंने ७वीं शताब्दीमें, फिर गंगपल्लवोंने, फिर चोलोंने यहां राज्य किया। उनका प्रसिद्ध राजा राजरान प्रथम सन् ९८५में हुआ है । इसने सन् १०११ तक राज्य किया। यह बड़ा प्रतापी था। इसने बहुतसे मकान व मंदिर बनवाए। १३ वीं शताब्दीमें तंजोर द्वारसमुद्र के होयसाल वल्लाल और मदुराक पांडव राजाओंके हाथमें चला गया । १४वीं में यह विजयनगर राज्यका भाग हो गया। १७वीं शताब्दीके प्रारंभमें तं नोरमें नायकवंश स्थापित हुआ।
पुरातत्व-तिरुवल्लूरका मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं। कहते हैं इसे राजराज प्रथमने बनवाया था । दूसरे मंदिर आलमगुडी, तिरुप्पुनदुरुत्ती देवाराममें हैं। ये सातवीं शताब्दीके होंगे। लेख तामील और ग्रन्थ अक्षरोंमें १०वीं शताब्दीके पूर्वके हैं। कुछ भेटें पांड्य राजा
ओने की है । मन्नारगुडी व तरुवद मरुदूरके मंदिरों में होयसाल, विजयनगरके समयके लेख हैं। कुछ लेख नायक और मराठोंके हैं।
जैन लोग-इस जिले में ६०० हैं। अधिकतर मन्नार गुड़ी और तंबोर तालुकामें हैं । जैन मंदिर जो मन्नार गुड़ीमें हैं व ता. नन्निलममें दीपनगुड़ीका जो मंदिर है उनके दर्शन करने को बहुत यात्री आते हैं। नेगापटममें एक जैन मंदिर था जिसके दर्शन करनेको यात्री ब्रह्मदेशसे भी आते थे।