Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास च मैवार प्रान्त । [९९ पंचशतोत्तरहिसहस परिंगते (वीर संवत् २५३८) शालिवाहन शककाले सप्तनवति सप्तशतोत्तर सहस्रवर्ष सम्मिते शाका सं० १७९७) भवनाम संवत्सरे । फिर आगे यह वर्णन है कि दीपेंगुडिमें पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव कराया। चतुमंघ दान हुआ । ग्रामोसब हुआ । भट्टारकनी तीन मास ठहरे ।
मं० नोट-यहां शाका १७९७में वीर सं० २६३८ दिया है। अब शाका १८४८ में वीर सं० २४५२ लिखा जाता है तब इस हिसाबसे शाका १७९७में वीर सं० २४ ० १ होना चाहिये किन्तु यहां २६३८ है अर्थात १३७ वर्षका अन्तर है। किस हिसाबसे यह गिना गया है सो खोन लगानेकी जरूरत है। संस्कृतमें मङ्गलाचरण करके वर्डमान, गौतम, चंदनार्या, श्रेणिक चेलिनीको स्मरण किया है। फिर मध्य लोक मेरुके दक्षिण भारः भरतक्षेत्र आर्यस्खण्ड अयोध्याके दक्षिण वर्णाश्रम धर्मधारी चौल देश है वहां दीपंगुडि है वहां श्री आदिनाथ महाराज हैं।
(4) नेगापटम-ता०-यहां एक प्राचीन मंदिर शिखरबन्द था इसको ईसाई लोगोंने नष्ट करके मेन्ट जोजेफ कालेन बनाया। यह जैनमंदिर प्रसिद्ध था। इसका दर्शन करने बौद्ध लोग भी आते थे।
(६) शियालीनगर-स्टेशन है । यह तामील कवि व साधु प्रसिद्ध तिरुज्ञान संबंधकी जन्मभूमि है । यह सातवीं शताब्दीमें हुए है। ___(७) तंजोरनगर-मदराससे २१८ मील । यहां १५४ जैनी हैं। एक प्राचीन निन मंदिर है । हम ता० ११ मार्च १९२६को गए थे। एक जैन संस्कृत पाठशाला है। यहां रानाका प्राचीन पुस्तकालय है निसमें २२००० सम्कतके लिखित ग्रंथ है।