Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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८२] प्राचीन जैन सास्क।
(१४) कोयम्बटर जिला यहां ७८६० वर्गमील स्थान है। चौहद्दी है-पश्चिम और दक्षिणमें नीलगिरि पर्वत और अनहमलई जो ७००० फुट ऊँचा है। उसरमें पूर्वीय घाटी है।
इतिहास-इस जिलेमें अनेक समाधि स्थान हैं जिनको पांडवकुली कहते हैं। ये सब इतिहाससे पूर्वके अति प्राचीन निवासियों के हैं। इनमें मुख्य अनईमलई पर्वतके निकट हैं। कहते हैं कि कोयम्बटूरकी पहाड़ीपर पांडवराजाओंने वास किया था। इस जिलेको कोंगूनाद कहते हैं । यह प्राचीन चीरा राज्यका अंश है। मूल चीरा राज्य मलयालम् (केरल) और कोयम्बटूर व सालेमके कुछ भाग तथा मेसूरके घाट तक उत्तरमें व उत्तरपूर्वमें शेवराय तक था । पूर्वमें चोलराज्य व दक्षिणमें पांडवों का राज्य था। यह कोंगूनाम इसलिये 'पड़ा कि सन् १.८९में आकर उतर पश्चिमसे गंग या कोंगनी वंशके राज्यने आकर यहां शासन किया। कोंगनी वंश का पहला राजा कोंगनी वर्मा था, यह शायद कावेरीकी घाटीसे आप होंगे । सन् ८७८में चीरा वंशमे चोल रानाओंने ले लिया और २०० वर्ष राज्य किया। फिर १०८० में होयसाल बल्लालोंने राज्य किया । सन् १३४८में विजयनगरके राजाओं ने अधिकार किया। सन् १७०४ में मैसूरके चिक्कदेव रामाने शासन किया पश्चात् मुसलमान आ गए।
यहांके मुख्य स्थान । (२) कंजीकोविल-ता एरोड-ग्रहांसे ९ मोल आसपास पांच ग्रामों में अर्थान बेल्लाडू, तितूर, विजयमंगलम्। पुंडई तथा कोंगम पालइसममें जिन मंदिर हैं। विजयमंगलम्के मंदिरजीमें