Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त ।
[ ८७ इसने स्थानीय ब्राह्मणोंको कहा कि वे अपनी कन्या विवाह देवें । ब्राह्मणोंने कहा कि जैन लोग यदि व्याह देंगे तो हम भी कन्या देंगे तब वेंकटपतिने जैनियोंसे कन्या मांगी । तव उन्होंने परस्पर सम्मति करके इस अप्रतिष्ठाको पसंद नहीं किया । उन्होंने राजाको यह बहाना बता दिया कि एक जैन अपनी कन्या दे देगा । नियत दिन नेकटराजा विवाह के लिये कन्याके घर गया परंतु वहां देखा कि घर में कोई न था, नात्र एक कुतिया बरामदे में बंधी थी इसपर वह क्रोधित हो गया और आज्ञा दि कि सब जैनियोंके मस्तक काट डाले जायें। तब बहुतसे भाग गए, बहुतसोंके मस्तक काटे गए । कुछ छिपकर अपना धर्म पालने लगे । कुछ शिव धर्म में बदल गए । कुछ काल पीछे एक जैन गृहस्थ जिनका पीछे नाम वीरसेनाचार्य हुआ था, टिन्ड़ीवनमूके निकट वेलूर में एक वापीके पास पानी छान रहे थे तब राजाके कुछ अफसरोंने उसको जैनी जानकर पकड़ लिया और राजाके पास ले गए। उस समय राजाके पुत्रका जन्म हुआ था, वह पसन्न था । उसने उसको छोड़ दिया । तब वह श्रावक श्रवणबेलगोला गए और जैनधर्मका विशेष अध्ययन किया और मुनि हो गए, यही वीरसेनाचार्य प्रसिद्ध हुए । इसी समय जिंजी प्रदेशका एक जैनी जो टिंडीवनम् तालुकाके तायनर ग्रामका निवासी गंगप्पा ओडइयर था त्रिचनापलीमें जाकर ओडइयर पालइयम जमींदारकी शरण में रहा । उसने मित्रवत रक्खा तथा कुछ भूमि दी । वह श्रवणबेलगुल गया और वहांसे श्री वीरसेनाचार्यको साथ लाया और उनका विहार जिंजी देशमें कराया । जो जैमी शिमवती हो गए थे उनको फिर जैन