Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैमूर प्रान्त। [६७ किया, फिर क्रमसे चोलोंने, मलखेडेके राष्ट्रकूटोंने, फिर तंबोरके महान चोलराजा राजेन्द्रदेवने, फिर विजयनगरके रानाओंने, पश्चात् मुसल्मानोंने अधिकार किया।
जैन लोग-कनड़ासे दूसरे नं०में उत्तर अर्काटमें जैनियोंकी संख्या है । जैन लोग कहते हैं कि उनका धर्म आर्य जातिका मूल प्राचीन धर्म है। जैनियोंकी संख्या करीब ८००० है । इसमें आधीसे अधिक बंडिवाश तालुका व शेष अर्काट और बोल्लर तालुकामें हैं । मदरास प्रांतमें कुल जैनी अनुमान २८००० है ।
जैनधर्मके राजवंशोंने कांचीमें बहुत वर्पोतक राज्य किया है (Jaia dynasti:s reigned for many years al Conjeevaram) अर्कोट गनटियर (सन् १८९५) में लिखा है
They must at one time A vcay numerous as their temples and sculptures are found in very many places from whici they themselves have now disappeared. They donot admit of any sub castes and say that lay are all purc Brahumans. Usual caste office is Nainar. Sy:neone called Rai, Chetti, Dies or Mudalier. All these may intermarry and associate frecly, but no Jains will tıke food witii iny other castem in."
भावार्थ-"किसी समय इनकी बहुत बड़ी संख्या होगी क्योंकि इनके मंदिर और प्रतिमाएं ऐसे बहुतसे स्थानोंपर पाए जाते हैं जहां अब वे नहीं रहे हैं । इनके यहां उपनातियां नहीं हैं । ये कहते हैं कि वे सब पवित्र ब्राह्मण हैं। उनकी साधारण जातिके अल नैनार है। इनमें कुछ राय, चेट्टी, दास या मुईलियर कहलाते हैं। ये सब स्वतंत्रतासे परस्पर खातेपीते व विवाहसम्बंध करते हैं परन्तु कोई भैन, जैन सिवाय दुसरी जातिका भोजन नहीं लेगा ।"