Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त | यहां कुरुम्बरोंका राज्य था जो बौद्ध या जैन होंगे। ये पीछे
शिवमती हो गए ।
इसने ७०० विद्यालय
जब
यह यात्रा करता
(४) श्रीपेरुम्बू दूर - ता० कंजीवरम् । मदराससे दक्षिण । पश्चिम २५ मील | यहां वैष्णवोंके प्रसिद्ध गुरु रामानुजाचार्यका जन्म सन् १०१६ के अनुमान हुआ था । स्थापित किये व ८९ मठ कायम किये । हुआ श्री रंगम्में लौट रहा था तब चोल राजाने आज्ञा दी कि शिवमत के माननेवाले सब ब्राह्मण हस्ताक्षर करें । रामानुज शिवमत नहीं मानता था यह भाग गया और आकर मैसूरके जैन राजा विट्ठलदेवकी शरण ग्रहण की । यह १२ वर्ष मैसूर में रहा । यहां उसने अपने प्रभाव से राजाको वैष्णव धर्ममें बदल लिया । जब चोल राजाकी मृत्यु हो गई तब रामानुज श्रीरंगम में लौटा । यहीं उसकी मृत्यु हुई |
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मदरास एपिग्राफी आफिसमें नीचे लिखे चित्रादि हैं(१) नं० सी २ (सन् १९१९ तक) जैन मूर्ति जो विल्लिवक्कर है।
२) नं० ४३० - (सन् १९२२ - २३) एक जैन मूर्ति एक चट्टान पर है जो मदुरा उतकम ता०के आनंदमंगलम् ग्राममें है । अपक्कम मांगरूल, आर्यपरूम्बाक्कम्, विशार और सिरुवाकाम् रुई बोनेके मुख्य स्थान हैं । यहां श्री वर्धमानस्वामीकी मूर्ति ६ फुट ऊंची पाई गई थी । अर्पक्कममें श्री आदिनाथजीका जैन मंदिर है । प्राचीन जैन स्मारक आर्यपेरूम्बाक्कम् तथा विशारमें हैं। वहां शिलालेख भी हैं। सिरुवक्कम के लेख (नं० ६४ ) से प्रगट है कि