Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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६६] माचीन जैन स्मारक। वहांके जैन मंदिर श्री करण पेराम्बलीको भूमि दान की गई थी।
(६) आनन्दमंगलम्-ओत्मकर स्टेशनसे ५ मील एक बड़ी चट्टानपर तीन समुदाय जैन मूर्तियोंके अंकित हैं। तथा दूसरी चट्टान पर एक कायोत्सर्ग जैन मूर्ति है। मध्य मूर्तिको जैन लोग अनंत तीर्थकर कहते हैं । लेख (नं० ४३०) है कि मदिराय कोंद पारकेशरी वन राजाके ३८वें वर्षके राज्यमें, विनयभाष कुरवदिगलके शिप्य वर्धमान परि यदिगलने निनगिरिपल्लीमें भक्तोंके लिये दान किया।
(१२) उत्तर अर्काट जिला। यहां ७३८६ वर्गमील स्थान है। उत्तरमें कुनबा और पूर्वीय घाट, पश्चिममें मैसूर, दक्षिणपश्चिम पालार, दक्षिणमें दक्षिणअर्काट और चिंगलपुट, उत्तरपूर्व नीलगिरि पहाड़ी।
इतिहाप-यहां द्राविड़ लोगोंकी सभ्यता सन ई०से १००० वर्ष पूर्वकी है। यह कहावत प्रसिद्ध है कि यहांके समुद्रतटसे विदेशोंके साथ बहुत अधिक व्यापार होता था। इसका प्रमाण यह है कि ममुद्रतटपर पल्लवरानाओंके सिक्कों के साथ रोम और चीनके भी सिक मिलते हैं।
यहां जैन साधुसंधने आकर बहुतसे लोगोंको जेनी बनाया था। जैनियोंका मुख्य अड्डा कंमीवरम् (कांची) था । बहुतसे जैन साधु नगरोंमें विहार करते थे। जैनधर्मके माननेवाले लोग अब भी अर्काट, वंडीवाश, पाल्लूर और दक्षिण अर्काटमें पाए जाते हैं। सातवीं शताब्दीमें पल्लवोंकी शक्ति घट गई, परन्तु उन्होंने मी तक राज्य