Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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प्राचीन जैन स्मारक |
सारसार पदस्थितं त्रिजगद्भुतं महलापुरे । नेमिनाथमहं चिरं प्रणमामि नोलमहस्विषं ॥ ६ ॥
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चामरासनभानुमंडलापडिवृक्ष सरस्वति । भोमदं दुभिपुष्पवृष्टिसुमंडितातपवारणै ॥ दमयेन कृतालयं करिशाभितं महलापुरे । नेमिनाथमहं चिरं प्रणमामि नोलमहस्विषं ॥ ७ ॥ आदिनाथमनामयं कमनोयमच्युतमक्षयं । घातिकमैचतुष्टयं क्षयकारिणं शिवदायिनं ॥ वादिराजविराजितं वरशासनं मइलापुरे । नेमिनाथमहं चिरं प्रणमामि नोटमहत्विषं ॥ ८ ॥
सानंदवंदित पुरन्दर वृन्दमौलि । मंदारकुल्लनव खेचर धूसरांक्रीं ॥ आनंदकान्तमति सुन्दर मिदुकांतं ।
श्रीनेमिनाथ जननाथमहं नमामि ॥ ६ ॥
( सी० एस० मल्लिनाथ मदरासके पास एक तामील लिखित ताड़पत्रकी पुस्तकसे गृहीत ।)
(११) चिंगिलपुट जिला ।
यहां ३०७९ वर्गमील स्थान है । चौहद्दी है - पूर्वमें बंगाल खाडी, उत्तर में नेल्लोर, पश्चिम और दक्षिण-उत्तर व दक्षिण अर्काट । मदरास शहर भी इसी की हदमें गर्भित है ।
इतिहास - प्राचीन काल से आठवीं शताब्दीके मध्य तक यह जिला पल्लव वंशके प्राचीन राज्यका भाग था। इनकी राज्यधानी कांची थी जिसको अब कंजीवरम् कहते हैं। सातवीं शताब्दीके प्रारम्भमें इनकी शक्ति बहुत चढ़ी हुई थी तब इनका राज्य एक