Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [६१ गंगवंशी तथा राष्ट्रकूट वंशी राजा पक्के जैनी थे (were stanch Jains) पल्लवराना महेन्द्रवर्मन प्रसिद्ध जैन राजा था परन्तु यह पीछे शिवमती हो गया ऐसा तामील साहित्यमें प्रसिद्ध है। पश्चिमी चालुक्य राना पुलकेशी प्रथम, विजयादित्य व विक्रमादित्य बहुत प्रसिद्ध जैन राजा थे जिन्होंने जैन मंदिरोंका जीर्णोद्धार कराया था व ग्राम भेट किये थे । चालुक्योंके समयमें जैन बहुत प्रभावशाली थे । राष्ट्रकूटोंके समयमें भी इन्होंने अपना प्रभाव स्थिर रक्खा । राष्ट्रकूटराजा अमोघवर्ष प्रथम जो श्रीजिनसेनाचार्यका शिप्य था,, बहुत प्रसिद्ध होगया है । कलचूरीवंशका वज्जाल राजा भी जैन था। गंगवंशी राजा राजमल जैनने उत्तर अर्काटमें वल्लिमलई में जैन गुफाएं स्थापित की थीं ( Ey. Incita. Vol. IV. P. 140;.
होयशालवंशी राना भी मूलमें जैनी थे। राना बुक्कर (सन् १३५३-१३७७) के समयमें जन और वैष्णवोंमें जो मेल हुआ है उससे प्रगट होता है कि प्राचीन विजयनगरके राजाओंने जैन धर्मको महत्व दिया था। राना उक्काने दोनों धर्मोकी रक्षा की और उमको मित्रभावसे रहने की प्रेरणा की। विजयनगर राना हरिहर हि के सेनापति के पुत्र इनाने जैनधर्म स्वीकार किया था। (S. I. Irs. V.:. I. P. 152.) रावट सेवल साहब लिखते हैं कि इस कंजीवरम्के यथोक्तकारि नामके भागमें एक विष्णु मंदिर है जिसमें नग्न जैन मूर्ति विराजित है । जैनियोंका प्राचीन मंदिर कंजीवरम्के पिल्लपालइयम् स्थानसे २ मिल तिरूपत्तिकुनरम् ग्राममें है । इस मंदिरकी छतपर सुन्दर चित्रकारी है। भीतपरके लेखसे प्रगट है कि यह उस समयकी है जब यहां चोलोंका महत्व था ।