Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [३१.. एक पाषाण है जिसपर एक छोटासा लेख है जो अपूर्ण है । मात्र इतना पढ़ा गया " ऐश्वर्यशाली वदेवा महाराजा"। मंडपके सामने चौरस चबूतरा है जहां एक पाषाणमें चार बैठे आसन जैन तीर्थकर यक्ष सहित (चित्र नं. १ ) है। नीचे चित्र सहित आसन (चित्र नं० २) है व छोटा स्तम्भ (चित्र नं. ३) ३॥ फुट ऊंचा है। इसके ऊपरी भागमें बैठे आसन जैन तीर्थकर नागफण सहित हैं। इसके नीचे स्वस्तिकका चिह्न है जिससे यह सुपाश्वनाथजीकी मूर्ति है। इसके नीचे भागमें दो लेख हैं। पहलेमें है "कनककीर्तिदेव आदि सेठीका गुरु....” दूसरेमें है निषीधिका (समाधिस्थान) आदि सेठीकी जो वल्लवसिंगी सेठीका पुत्र था। यह अनंतपुर जिलेके पेनुगोंडे स्थानका निवासी था जो मैसूरके दिगम्बर जैनोंकी विद्याका केन्द्र था । (Digambar Jain iconography Indi. Ant. Vol. XXXII 1903 p. 451). इस दूसरे मंदिरके दक्षिण तीसरे मंदिरकी न्यू मिलती है। मंदिरके भीतोंके पास चौरस प्लैप्टर ५॥ फुट लम्बा (चित्र नं. ४) महा. मंडपके पास एक बैठे आसन जै। तीर्थकरकी मूर्ति मस्तक रहित २ फुट ८ इंच ऊंची है। पश्चिमकी तरफ कुछ दूर एक कायोत्सर्ग जैन तीर्थकर हैं (चित्र नं. ६) पग खंडित हैं । यह पांच फुट ३ इंच ऊंची है। ईंटोंके मंदिरसे पूर्व ४२ फुटकी दूरीपर एक चौकोर चबूतरा है जिसपर एक स्तंभ कोरा हुआ दो आले सहित है । यह २ फुट ७ इंच ऊंचा तथा चित्र नं० ४के समान है ।
नीचेके आलेमें दो बैठे हुए पुनारी हैं तथा ऊपरके आलेमें एक बैठे आसन जैन तीर्थकर हैं। बीचमें सिंहका चिह्न है,