Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [३३ (२) दुसरालेख है-'इसमें शास्त्राभ्यासो निनपद नुतिः' आदि है अर्थात् जबतक मोक्ष न हो तबतक हमको शास्त्रका अभ्यास, मिनेन्द्रकी भक्ति, सदा आर्य पुरुषोंकी संगति, उत्तम चरित्रवालोंके गुणोंकी कथा, परके दोष कहने में मौन, सबसे प्रिय व हितकारी वचन बोलना व आत्मतत्वकी भावना प्राप्त हों। शाका १३१९ ईश्वर वर्ष में फाल्गुण सुदी एकम सोमवारको....सेटीकी निषिधिका.... कल्याण हो।
(३) तीसरे लेख में है-अनुपम कविश्री विजयका यश पृथ्वीमें उतरकर आठों दिशाओं में शीघ्र फैल गया....औ श्री विजय तुम्हारी भुना जो शरणागतको कल्पवृक्ष तुल्य है, शत्रु रानारूपी तृणके लिये प्रसिद्ध भयानक अग्निवन तुल्य है, व प्रेमके देव द्वारा लक्ष्मीरूपी स्त्रीके पकड़नेको जाल तुल्य है इस पृथ्वीकी रक्षा करे। ____ " ओ दंडनायक श्री विजय, दान व धर्ममें सदा लीन तुम समुद्रोंसे वे उस पृथ्वीको रक्षा करते हुए चिरकाल जीवो।"
यहां कुछ खुदाई और होनेकी जरूरत है।
दानुयलाईके उत्तर १२ मील पेज मुडियममें एक वीरभद्रका मंदिर है, उसमें सदाशिव रानाका लेख है। इसमें एक बातका ऐतिसिक प्रमाण है कि इस ओर विजयनगरके राजाओंने अपना महत्व स्थापित किया था।
विजयनगरमें अब भी बहुतसे जैन मंदिर हैं यह बात प्रसिद्ध है तथा विजयनगरके कोई राना ऐतिहासिक दृष्टिसे मूलमें जैनवंशन न थे इससे वे जैन मंदिर इस वंशके आनेके पूर्वके हैं-उनको सकड़ों वर्षों से भुला दिया गया है। उनमें मूर्तिये नहीं हैं। सत्र
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