Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर मान्त। [४७ समूह है जिसकी सहशता जिलेभरमें नहीं है ( a collection of Jain temples which is herhaps without rival in the district)
यहांपर नौ मंदिर हैं। दसवां मंदिर उजालपेताके बाहर उत्तर तरफ हनुमंती पहाड़ीकी दूसरी ओर है। नौमें से तीन मंदिर वसेश्वर मंदिरके गोपुरम्के दक्षिण पश्चिम १०० गजकी दूरीपर हैं । चार हालुगोडीके भीतर हैं। शेष तीन इन दोनों समूहोंके बीच खेतोंमें हैं। ये सब मंदिर विना चूना गारा लगाए हुए बिलौरी पाषाण (Granite) के बने हुए हैं। एक लेखमें सन् १९७५-७६ है जिसको एक व्यापारीने बनवाया था।
____एकके सिवाय सबमें हम्पीके जैन मंदिरके सदृश पाषाणके शिखर हैं । द्वारपर खुदाई है । इनमेंसे सबसे बड़े मंदिरको अब हिंडल संगेश्वरगुडी कहते हैं । इनके देखनेसे मालूम होता है कि यहां जैनियोंका बहुत प्रभाव था। ( The wholte series show how strong Juin iufinence must at oue time have been in this localtiy ) इसी ढंगके दूसरे भी मंदिर निकट स्थानों में हैं । १ मंदिर सिंदीगाह ग्राममें, एक वेलारीसे ९ मील कोलुरु ग्राम में, एक तेकलकट ग्राममें तथा एक कुरुगोडुके पश्चिम ६ मील वरयावी ग्राममें है।
(११) कोगली-ता०हडगल्ली । यहांसे उत्तर पश्चिम ४मील। देखनेसे विदित होता है कि यह जैनियोंका एक महान स्थान था। यहां एक जैन मंदिर वस्तीके नामसे है। इसीके निकट एक पुरुषाकार जैन मूर्ति है । इस ग्रामके निकट नेलीकुदिरी, कन्नेहल्ली तथा कोगली सम्मुत कोडीहल्ली ग्रामोंमें जैन स्मारक हैं। वसतीके भीतर