Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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प्राचीन जैन स्मारक। कोरी हुई है यह बैठे आसन है । इस पाषाणके पीछे बादका एक तेलुगू भाषामें लेख है । ग्रामके दक्षिण छोटी चट्टानके ऊपर एक पाषाण है जिसपर कायोत्सर्ग जैन तीर्थकरकी मूर्ति ३॥ फुट ऊँची है । यह नग्न है । इसलिये यह दिगम्बर आम्नायकी है । हर दोनों तरफ चमरेन्द्र हैं । आसपास जो खुदे हुए पाषाण कुछ मंदिरोंके पड़े हुए हैं उनमें एक हरे पाषाणका खंड है जिसपर लेख है । इस पत्थरका ऊपरी भाग टूट गया है परन्तु यह मालूम होता है कि यहां मूलमें जैन तीर्थकरकी मूर्ति होगी क्योंकि पद्मासन पग अभीतक दिखलाई पड़ते हैं।
ग्रामके पश्चिम उत्तर एक छोटी चट्टानपर दो और पाषाण हैं जिनमें दो नग्न कायोत्सर्ग जैन मूर्तियां खुदी हुई हैं ये भी ३॥ फुट ऊंची पहलेके अनुमार है । हरएक मूर्तिके ऊपर तीन छत्र हैं तथा हर तरफ चमरेन्द्र हैं। ग्रामवालोंने इनके चारों तरफ दीवाल खड़ी कर दी है। उसे काले रंगसे पोत दिया है व शिवमतके चिह्नोंसे उसे भूपित कर दिया है । इनसे पश्चिम कुछ फुट जाकर एक दुसरी चट्टान है । इसके भीतर भी एक जैन तीर्थकरकी मूर्ति अंकित है। यह मूर्ति आठ फुटसे अधिक लम्बी है, नग्न है व अन्योंके समान कायोत्सर्ग है । इसीके पास चट्टानपर दो चरणचिह्न अंकित हैं जिनके आसपास चित्रकला है। इस चट्टान के नीचे एक छोटे सरोवरके पास एक चित्रित सीधा पाषाण है जो १० फुट ऊँचा है । इसके गस्तकपर कुछ लेख है। आधी दूर पर दो दो लाइनमें भी कुछ अक्षर खुदे हैं। ये सब लेख दो फुट वर्गमें है। यहां अधिक जांच करनेसे जैनियोंके और भी स्मारक मिल सकेंगे।