Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त |
[ ४१ पुरुष है उनका मस्तक साफ केश रहित है। दूसरे पुरुषके डाढ़ी है । पहले के पास कमंडल है और वह कुछ वस्तु दूसरेको दे रहा है जो दोनों हाथ जोड़े विनयसे बैठा है । (नोट-मालम होता है इनमें एक मुनि, दूसरा श्रावक है ।
इन आलोंके ऊपर ३ जैन तिर्थकरोंकी मूर्तियां बैठे आसन हैं। तीन दूसरी चट्टानोंपर भी ऐसी ही मूर्तियां अंकित हैं । किन्तु संख्यामें अंतर है । दो पश्चिमीय चट्टानोंपर कानोंमें आभूषण आदि पहने हुए स्त्रियां हाथ जोड़े किसी मुनिके सामने बैठी है इन सबके ऊपर पद्मासन जैन तीर्थकर है । इनमेंसे एकके नीचे दो या तीन लाइन लेख है । इन चार समूहों में से एकके चारों तरफ हाल में मंदिर बनाया गया है व पद्मासन मूर्तियोंके आंखें लगा दी गई हैं । तथा मुखपर शिवका चिह्न भस्म सहित लगा दिया गया है।
इस पर्वत पर जो माधवस्वामीका मंदिर है उसके सामने जैन मंदिर सुरक्षित दशा में है । पहले इसके भीतर एक जैन मूर्ति खड़ी थी - यह मूर्ति बहुत सुन्दर काले पाषाणकी ३ फुट ऊंची खड़गासन नग्न दिगम्बर है। अब इस मूर्ति तालुका आफिसमें रख दीगई है । इस मंदिर के पीछे पाषाणकी २१ जैन तीर्थंकरोंकी मूर्तियां पद्मासन और दो कायोत्सर्ग अंकित हैं । इसके नीचे एक लेख है, इसी मंदिरसे उत्तर आध मील जाकर पहाड़ीका निकला हुआ भाग है यहीं प्रसिद्ध जैनस्मारक हैं । इसीको रससिद्धका झोपड़ा कहते हैं ।
मदरास एपिग्राफी में सी नं ० ४ में किलेके भीतर पर्वत में कटे हुए पाषाण मंदिरका नकशा है ।