Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त । [३ और मैसूर राज्यमें वेल्लारीके कोनेके निकट एक ग्राममें पाए जाते हैं। यह बताता है कि उत्तरीय आधा भाग मौर्यराज्यका अंश था तथा दक्षिणी भाग इस तरह बटा हुआ था कि मदुरा या दक्षिण मथुराके पांडवराजा बिलकुल दक्षिणमें राज्य करते थे। चोलवंशीय राजा उनहीके उत्तर और पूर्वमें तथा चेरा या केरल राजा पश्चिमीय तटपर राज्य करते थे। अशोक महारानके पीछे किसी समय कमीवरम् या कांचीके पल्लव रानाओंने बहुत उन्नति की थी-उनका राज्य पूर्वीय तटपर उत्तरमें उड़ीसातक फैला हुआ था। उत्तरमें मौर्योके पीछे अंध्र राजाओंने राज्य किया। ये लोगबौद्धधर्मके माननेवाले थे, इन्होंने अमरावतीमें सुन्दर मंगमर्मरका एक स्तूप बनवाया था और बहुतसे मकान बनवाए थे जिनके ध्वंश कृष्णा और गुत्तुर जिले में पाए जाते हैं। उनके आचर्यकारी शीशेके सिक्के भी वहां मिलते हैं।
पांचवी शताब्दीके अनुमान चालुक्यवंशी राजा जो उत्तरीय भागोंसे दक्षिणमें आए थे, पश्चिमीय दक्षिणमें उन्नति करने लगे, सातवीं शताब्दीमें उनके दो विभाग हो गए-एक पश्चिमीय, दूसरा पूर्वीय । पूर्वीय चालुक्योंने वेंगीदेशके पल्लव राजाओंको विनय किया और वहां जम गए । वेगींदेश कृष्णा और गोदावरी नदियोंके मध्य कलिंगदेशसे दक्षिण है तथा पश्चिमीय चालुक्य अपने मूल स्थानमें बने रहे । इसीके साथ साथ दक्षिणके दक्षिण पश्चिममें और मैसूरके उत्तरमें कादम्बवंशी राजाओंकी शक्ति बढ़ गई जिनकी राज्यधानी उत्तर कनड़ाके वनवासी स्थानपर थी। इन्होंने कंमीवरमके पल्लवोंको हरादिया और पश्चिमीय चालुक्योंको लगातार सताया। इघर निजाम राज्यके मलखेड़के शासक राष्ट्रकूटवंशी राजाओंने बहुत