Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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प्राचीन जैन स्मारक |
'पर्वतकी यात्रा भी करते थे, अब भी वर्षमें एक दिन ग्रामके ५ आदमी जाते हैं । इस ग्राम में पोष्ट मास्टर अप्पास्वामी नैहू हैं । उनको साथ लेकर हमपर्वतपर गए। चहुंओर पर्वत के नीचे कमलोंसे - सज्जित ७२ सरोवर है जिनको राजाने अपनी ७२ रानियोंके नाम से बनवाए थे । पर्वतके नीचे प्राचीन नगर के ध्वंश व किले व 1 मंदिरोंके ध्वंश हैं । एक झोपड़ीके नीचे कुछ मूर्तियां रक्खी थीं उनमें एक खंड पद्मासन जैन मूर्तिका देखने में आया । यह पर्वत बहुत लम्बा चौड़ा, ऊँचा है । श्रीसम्मेदशिखरजीके समान शास्त्रों में कोटिशिलाको १ योजन लम्बा चौड़ा ऊंचा लिखा है वैसा ही यह पर्वत है । इसके एक भागके एक बड़े पाषाणको दीपशिला कहते हैं । राजा इसकी बहुत मान्यता करता था । यही वह शिला है जिसको नारायण उठाया करते थे ऐसा अनुमान किया जासक्ता है । पर्वतके ऊपर विकट जंगल है | हम ७ बजे चलकर
१० ॥ बजे ऊपर पहुंचे परन्तु जानकार आदमी साथमें न रहने से पर्वत पर जैन मूर्तियां देखने में नहीं आई। भा० दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीको चाहिये कि अच्छी तरह खोज करावे और यदि हमारे ही समान निश्चय होजावे तो इस तीर्थको प्रसिद्ध करे । - जैनशास्त्रों में कोटिशिलाका प्रमाण यह है
जसरहरायस्स सुआ पंचसयाई कलिंगदे सम्मि | कोडिसिला कोडि मुणी निव्वाणगया णमो तेसिं ॥ १८ ॥ ( प्राकृत निर्माणकांड ) दशरथराजाके सुत कहे। देश कलिंग पांचसौलहे । कोटिशिला मुनि कोटिप्रमान । वंदन करू जोर जुग पान ॥१६॥ श्रीजिनसेनाचार्यकृत हरिवंशपुराण पर्व ५३ में है कि