Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * पुरिसवेदेण उवडिवस्स पढमं ताव णवंसयवेदो उवसमेदि, सेसाणि कम्माणि अणुवसमाणि।
३१. किमट्ठमेसा उवसंताणुवसंतकम्मपरूवणा आढत्तेत्ति णासंकणिज्जं, सव्वेसिं कसाय-णोकसायाणमक्कमोवसामणापडिसेहमुहेण कमोवसमपदंसणट्ठमेदिस्से परूवणाए आढत्तादो। तं कधं ? पुरिसवेदोदएण उवढिदो जो उवसामगो तस्स पुन्वमेव ताव गवंसयवेदो उत्रसमेदि, ताधे पुण सेसाणि कम्माणि अणुवसंताणि । कुदो ? तदुवसमणिबंधणविसोहीणमज्ज वि समुप्पत्तीए असंभवादो। ण चाणंतगुणविसोहीहिं उवसमिज्जमाणाणं कम्माणमणंतगुणहीणहेट्ठिमविसोहिविसए उवसमसब्भावो, विप्पडिसेहादो।
* तदो इत्थिवेदो उवसमदि ।
$ ३२. णवंसयवेदे उवसंते तदो पच्छा अंतोमुडुत्तं गंतूण इथिवेदो उवसमदि, तदुवसमणिबंधणाणं विसोहीणं तत्थ संपुण्णत्तदंसणादो। एवमुपरिमसुत्ते वि कारणणिद्देसो अणुगंतव्यो।
* तदो सत्तणोकसाया उवसामेदि । __. * पुरुषवेदसे उपशमश्रेणिपर चढ़े हुए जीवके सबसे पहले नपुंसकवेदका उपशम होता है, उस समय शेष कर्म अनुपशान्त रहते हैं।
$३१. शंका-यहाँ उपशान्त और अनुपशान्त होनेवाले कर्मोकी प्ररूपणा किसलिए स्वीकार की गई है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि सब कषायों और नोकषायोंकी अक्रम से उपशामनाके निषेध द्वारा क्रमसे उपशमको दिखलानेके लिए यह प्ररूपणा स्वीकार की गई है।
शंका-वह कैसे?
समाधान-क्योंकि पुरुषवेदके उदयसे श्रेणिपर चढ़कर जो उपशम करनेवाला जीव है उसके सबसे पहले नपुंसकवेदका ही उपशम होता है । परन्तु उस समय शेष कर्म अनुपशान्त रहते हैं, क्योंकि उनके उपशमनकी कारणभूत विशुद्धियां अभी भी उत्पन्न नहीं हुई हैं। और जो कर्म अनन्तगुणी विशुद्धिसे उपशमभावको प्राप्त होते हैं उनका अनन्तगुणहीन अधस्तन विशुद्धिके स्थानमें उपशमका सद्भाव नहीं हो सकता, क्योंकि इसका निषेध है ।
* उसके बाद स्त्रीवेदका उपशम होता है।
३२. नपुंसकवेदके उपशान्त हो जानेपर तदनन्तर अन्तर्मुहूर्त जाकर स्त्रीवेदका उपशम होता है, क्योंकि उस समय स्त्रीवेदको कारणभूत विशुद्धियाँ वहाँ पूरी देखी जाती है। इसी प्रकार आगेके सूत्रोंमें भी कारणका निर्देश जान लेना चाहिये ।।
* उसके बाद सात नोकषायोंका उपशम होता है।