Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 405
________________ ३६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे प्पाएमाणो इदमाह-- * तदो से काले अणुभागसंतकम्मे णाणत्तं । $ ५१२. पुव्वमणुभागसंतकम्ममागाइदेण सह माणे थोवमिच्चादिपरिवाडीए समवद्विदं एण्हि पुण पढमाणुभागखंडए धादिदे सेसाणुभागसंतकम्मम्मि णाणत्तमत्थि तमिदाणिं वत्तइस्सामो त्ति भणिदं होइ । * तं जहा ६५१३. सुगमं । * लोभे अणुभागसंतकम्म थोर्व। मायाए अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । माणस्स अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । कोहस्स अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । $ ५१४. घादिदसेसाणुभागसंतकम्ममेदीए अप्पाबहुअपरिवाडीए अरसकण्णायारेण चिट्ठइ त्ति वुत्तं होइ । * तेण परं सव्वम्हि अस्सकण्णकरणे एस कमो । $ ५१५. एस अणंतरपरूविदो अणुभागसंतकम्मप्पाबहुअकमो अपुव्वफद्दय. बातका कथन करते हुए इस सूत्रको कहते हैं * तत्पश्चात् तदनन्तर समयमें अनुभागसत्कर्ममें जो नानापन है उसका कथन करेंगे। ५१२. पहले अनुभागसत्कर्मको ग्रहण करनेके साथ 'मानसंज्वलनमें स्तोक अनुभाग हैं' इत्यादि परिपाटी क्रमसे जो अनुभाग समवस्थित है उसका इस समय पुनः प्रथम अनुभागकाण्डकके घाते जानेपर जो अनुभागसत्कर्म शेष रहता है उसमें नानापन है उसे इस समय बतलावेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है। * वह जैसे । ६५१३. यह सूत्र सुगम है। * लोभमें अनुभागसत्कर्म सबसे स्तोक है। उससे मायामें अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा है। उससे मानमें अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा है और उससे लोममें अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा है। $ ५१४. घात करनेके बाद जो अनुभागसत्कर्म शेष रहता है वह इस अल्पबहुत्व परिपाटीके अनुसार अश्वकर्णके आकाररूपसे अवस्थित रहता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। * इससे आगे सम्पूर्ण अश्वकर्णकरणके कालमें यही क्रम है।। 5 ५१५. यह अनन्तर कहा गया अनुभागसत्कर्मके अल्पबहुत्वका क्रम और अपूर्व स्पर्घकों

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