Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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अस्सकण्णकरणे अप्पाबहुअं
३६७ वत्तव्वं, मेदामावादो त्ति पदुप्पायणट्ठमुवरिममप्पणासुत्तं
8 एवं मायाए माणस्स च कोहस्स च ।
६५१८. सुगमं । एवमेदमविभागपडिच्छेदप्पाबहुअमंतदीवयभावेण अस्सकण्णकरणद्धाए चरिमसमए णिरूविय संपहि कोहादिसंजणपडिबद्धाणं पुव्वापुन्वफद्दयाणं तव्वग्गणाणं च पमाणविसये पिण्णयजणणट्ठमप्पाबहुअं परूवेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ
* अस्सकण्णकरणस्स पढमे अणुभागखंडए हदे अणुभागस्स अप्पाबहुअं वत्तइस्सामो।
६५१९. अस्सकण्णकरणस्स पढमाणुभागखंडए घादिदे संते जं सेसं संजलणाणमणुभागसंतकम्मं पुव्वापुव्वफद्दयसरूवं तव्विसयमप्पाबहुअमेण्हि वत्तइस्सामो त्ति वुत्तं होइ।
* तं जहा। ६५२०. सुगमं ।
8 सव्वत्थोवाणि कोहस्स अपुवफद्दयाणि । माणस्स अपुवफद्दक्योंकि उससे इसमें भेद नहीं है । इस प्रकार इस बातका कथन करनेके लिए आगेका अर्पणासूत्र आया है
* इस प्रकार माया, मान और लोमके अपूर्व स्पर्धकोंके अविभागप्रतिच्छेदोंका अल्पबहुत्व जानना चाहिये ।
६५१८. यह सूत्र सुगम है। इस प्रकार अविभागप्रतिच्छेदोंके इस अल्पबहुत्वका अन्त्यदीपकरूपसे अश्वकर्णकरणके कालके अन्तिम समयमें कथन कर अब क्रोधादि संज्वलनोंसे सम्बन्ध रखनेबाले पूर्व स्पर्धकों, अपूर्व स्पर्धकों और उनकी वर्गणाओंके प्रमाणके विषयमें निर्णय उत्पन्न करनेके लिये अल्पबहुत्वका कथन करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* अश्वकर्णकरणके प्रथम अनुभागकाण्डकके पाते जानेपर शेष रहे अनुभागके अल्पबहुत्वको बतलावेंगे।
$ ५१९. अश्वकर्णकरणके प्रथम अनुभागकाण्डकके घाते जानेपर चारों संज्वलनोंका पूर्व और अपूर्व स्पर्धकस्वरूप जो अनुभागसत्कर्म शेष रहता है इस समय तद्विषयक अल्पबहुत्वको बतलावेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* वह जैसे। $ ५२०. यह सूत्र सुगम है। * क्रोधसंज्वलनके अपूर्व स्पर्धक सबसे स्तोक हैं । उनसे मानसंज्वलनके अपूर्व १. आ प्रतौ माणस्स कोहस्स च इति पाठः ।