Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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अस्सकण्णकरणचरिमसमए ट्ठदिबंधपरूवणा
तोमुहुत्तकालमस्सकण्णकरणं पवत्तदित्ति वृत्तं होइ । तदो एदीए परूवणाए जहाकममस्सकण्णकरणद्धाए चरिमसमयं संपत्तस्स तक्कालभाविओ जो विसेसो द्विदिबंधादिविसओ तण्णिद्देसकरणट्टमुत्तरो सुत्तपबंधो—
* अस्सकण्णकरणस्स चरिमसमए संजलणाणं द्विदिबंधो अट्ठवस्साणि ।
९ ५३१. पुव्वमस्सकण्णकरणकारयस्स पढमसमए अंतोमुहुत्तूणसोलसवस्सपमाणो होंतो संजलणाणं द्विदिबंधों तत्तो जहाकमं परिहाइदूण एहिम दुवस्समेत्तो जादो त होदि
* सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधो संखेजाणि वस्ससहस्साणि ।
९५३२. णाणावरणादिसेसकम्माणं पुण द्विदिबंधो पुव्वुत्तसंधिम्मि संखेज्जवस्ससहस्सिओ होंतो तत्तो जहाकमं संखेज्जगुणहाणीए संखेज्जसहस्समेत्तेसु ठिदिबंधोसरणवियप्पे गदेसु वि संखेज्जवस्ससहस्सपमाणो चैव एत्थ वि दट्ठव्वो । एसो एत्थ सुत्तत्थसमुच्चओ | संपहि एत्थेव द्विदिसंतकम्मपमाणाव हारणट्ठमिदमाह -
* णामागोदवेदणीयाणं द्विदिसंतकम्ममसंखेज्जाणि वस्त्राणि ।
गर्भ अन्तर्मुहूर्त कातक अश्वकर्णकरण प्रवृत्त रहता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इसलिये इस प्ररूपणाके द्वारा क्रमसे अश्वकर्णकरणके कालके अन्तिम समयको प्राप्त हुए क्षपक जीवके तत्काल होनेवाली स्थितिबन्धादि विषयक जो विशेषता है उसका निर्देश करनेके लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है—
* अश्वकर्णकरणके अन्तिम समयमें संज्वलनोंका स्थितिबन्ध आठ वर्षप्रमाण होता है ।
५३१. पूर्व में अश्वकर्णकरणकारक के प्रथम समय में अन्तर्मुहूर्त कम सोलह वर्ष प्रमाण होकर पुनः संज्वलनोंका स्थितिबन्ध क्रमसे घटकर इस समय आठ वर्षप्रमाण हो गया है यह उक्त कथनतात्पर्य है ।
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शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है ।
$ ५३२. तथा ज्ञानावरणादि शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध पूर्वोक्त सन्धिमें संख्यात हजार वर्ष - प्रमाण होकर उसमें से यथाक्रम संख्यात गुणहानिके द्वारा संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरणसम्बन्धी भेदों व्यतीत होनेपर भी यहाँपर भी संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध जानना चाहिये यह यहाँ सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ हैं । अब यहींपर शेष कर्मोंके स्थितिसत्कर्मके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये इस सूत्रको कहते हैं
* नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मोंका स्थितिसत्कर्म असंख्यात वर्षप्रमाण होता है ।