Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 410
________________ ३६९ भाग-14 अस्सकण्णकरणे अप्पाबहुअं ३६९ फद्दयाणमसंखेज्जदिभागो। माणस्स अपुव्वफद्दयवग्गणाओ विसेसाहियात्रो । * मायाए अपुव्वफद्दयवग्गणाओ विसेसाहियात्रो। * लोभस्स अपुव्वफद्दयवग्गणाओ विसेसाहियाभो । $ ५२५. किं कारणं ? अपुव्वफद्दएसु विसेसाहिएसु संतेसु तव्वग्गणाणं तहाभावसिद्धीए णिव्वाहमुवलंभादो । * लोभस्स पुवफद्दयाणि अणंतगुणाणि । ६५२६. किं कारणं ? पुव्वफद्दयाणि अणंतखंडाणि कादण तत्थेयखंडमेत्ताणि व अपुव्वफद्दयाणि होति, एयगुणहाणिहाणंतरफद्दयाणमसंखेज्जदिभागपमाणत्तादो । पुणो तेसु एयफद्दयवग्गणसलागाहिं गुणिदेसु अपुव्वफद्दयसव्ववग्गणाओ आगच्छति । एदाओ पुव्वफद्दयाणमणंतभागमेतीओ, पुव्वफद्दयविसयणाणागुणहाणिसलागाहितो एयफद्दयवग्गणाणमणंतगुणहीणत्तोवएसादो । तदो सिद्धमेदेसि अणंतगुणत्तं । * तेसिं चेव वग्गणाश्रो अणंतगुणाओ । ६५२७. को गुणगारो ? एयफद्दयवग्गणसलागाओ। समाधान-एक गुणहानिस्थानान्तरसम्बन्धी स्पर्धकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण है। उनसे मानसंज्वलनके अपूर्व स्पर्धकोंकी वर्गणाएँ विशेष अधिक हैं। उनसे मायासंज्वलनके अपर्व स्पर्धकोंकी वर्गणाएँ विशेष अधिक हैं तथा उनसे लोभसंज्वलन के अपूर्व स्पर्धकोंकी वर्गणाएँ विशेष अधिक हैं । ६५२५. क्योंकि अपूर्व स्पर्धकोंके विशेष अधिक होनेपर उनकी वर्गणाओंकी उस रूपसे सिद्धि निधिरूपसे पाई जाती है। ॐ उनसे लोमके पूर्व स्पर्धक अनन्तगुणे हैं । ६५२६. क्योंकि पूर्व स्पर्धकोंके अनन्त खण्ड करके उनमेंसे एक खण्डप्रमाण ही अपूर्व स्पर्धक होते हैं, क्योंकि वे एक गुणहानिस्थानान्तरके स्पर्धकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं। पुनः उनके एक स्पर्धककी वर्गणाशलाकाओंसे गुणित करनेपर अपूर्व स्पर्धकोंकी सब वर्गणाएँ उत्पन्न होती हैं । अतः ये पूर्व स्पर्धकोंके अनन्तवें भागप्रमाण होती हैं, क्योंकि पूर्व स्पर्धकविषयक नाना गुणहानिशलाकाओंसे एक स्पर्धकसम्बन्धी वर्गणाएँ अनन्तगुणी हीन होती हैं ऐसा उपदेश पाया जाता है। इसलिये लोभसंज्वलनके अपूर्व स्पर्धककी वर्गणाओंसे लोभसंज्वलनके पूर्व स्पर्धक अनन्तगुणे होते हैं यह सिद्ध हुआ। * उनसे उन्हींकी वर्गणाएँ अनन्तगुणी हैं । ५२७. शंका-गुणकार क्या है ? समाधान-एक स्पर्धककी वर्गणाशलाकाएँ गुणकार हैं । ७४.

Loading...

Page Navigation
1 ... 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442