Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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उवसमसेढीए माणेण उवट्ठिदस्स परूवणा * एदेण कारणेण णिरयगदितिरिक्खजोणिमणुस्सगदीओ ण गच्छदि। 5 २२३. गयत्थमेदं सुत्तं । * एसा सव्वा परूवणा पुरिसवेवस्स कोहेण उवहिवस्स ।
5 २२४. एसा सव्वा वि अणंतरपरूवणा पुरिसवेदस्स कोहोदएण उवडिदस्स उवसामगस्स परूविदा दट्ठन्वा ति उत्तं होई । संपहि पुरिसवेदस्स चेव माणसंजलणोदयेणुवट्ठिदस्स उवसामगस्स चडमाणोदरमाणावत्थासु जो परूवणामेदो तंविहासण?मुवरिमो सुत्तपबंधो
* पुरिसवेदस्स चेव माणेण उवहिवस्स णाणत्तं । $ २२५. वत्तइस्सामो ति वक्कसेसो एत्थ कायव्वो । सुगममण्णं* तं जहा। ६२२६. सुगमं । * जाव सत्तणोकसायाणमुवसामणा ताव णत्थि णाणतं ।
$ २२७. चड माणस्स ताव अधापवत्तकरणपढमसमयप्पहुडि जाव अंतरकरणं कादूण णसयइत्थिवेदोवसामणाणंतरं सत्तणोकसायाणमुवसामणा समप्पदि ताव
* इस कारणसे उक्त जीव नरकगति, तिर्यशगति और मनुष्यगतिको नहीं जाता है।
5 २२३. यह सूत्र गतार्थ है। * यह सब प्ररूपणा क्रोधके साथ उपस्थित हुए पुरुषवेदी उपशामककी है।
$ २२४. अनन्तर कही गई यह पूरी प्ररूपणा क्रोधके उदयके साथ उपस्थित हुए पुरुषवेदी उपशामककी प्ररूपित जाननी चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब मानसंज्वलनके साथ उपस्थित हुए पुरुषवेदी उपशामकके ही चढ़ने और उतरनेको अवस्थाओंमें जो प्ररूपणाभेद है उसका विशेष व्याख्यान करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* मानके साथ चढ़े हुए पुरुषवेदीकी प्ररूपणामें जो भेद है उसे बतलावेंगे । $ २२५. 'बतलावेंगे' इतना विशेष वाक्य इस सूत्रमें जोड़ना चाहिये । अन्य सब सुगम है । * वह जैसे। ६ २२६. यह सूत्र सुगम है। * जबतक सात नोकषायोंकी उपशामना होती है तबतक भेद नहीं है ।
$ २२७. चढ़नेवाले जीवके अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयसे लेकर जबतक अन्तर करके नपुंसकवेद और स्त्रीवेदकी उपशामनाके अनन्तर सात नोकषायोंकी उपशामना समाप्त होती है