Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे एवं सपत्थ । पदेसुक्यो अस्सिं समये थोवो। से काले असंखेजगुणो । एवं सव्वत्थ ।
$ २९२. दोण्हमेदेसि सुत्ताणमत्थो सुगमो। एवं तदियमूलगाहमवलंविय चदुहिं भासगाहाहिं बंधोदयसंकमाणमणुभाग-पदेसविसयाणं परत्थाणप्पाबहूअं सत्थाणप्पाबहुअं च अणुमग्गियण संपहि पुणो वि सत्थाणप्पाबहुअस्स फुडीकरणटुं चउत्थमूलगाहाए समोदारो कीरदे
* एत्तो चउत्थी मलगाहा । ६२९३. सुगमं । * तं जहा। 5 २९४. सुगमं । (९४) बंधो व संकमो वा उदो वा किं सगे सगे हाणे ।
से काले से काले अधिो हीणो समो वा पि ॥१४७॥ ६२९५. एसा चउत्थी मूलगाहा बंधोदयसंकमाणमणभाग-पदेसविसयाणं सत्थाणप्पाबहुअपरूवणट्ठमोइण्णा । तं कधं ? संपहियसमयबंधसंकमोदयेहिंतो से काले हीन होता है। इसी प्रकार सर्वत्र जानना चाहिये । इस समय प्रदेश-उदय सबसे स्तोक होता है। तदनन्तर समयमें असंख्यातगुणा होता है। इसी प्रकार सर्वत्र जानना चाहिये।
$ २९२. इन दोनों चूर्णिसूत्रोंका अर्थ सुगम है। इस प्रकार इस तीसरी मूलगाथाका अवलम्बन लेकर चार भाष्यगाथाओं द्वारा अनुभाग और प्रदेशविषयक बन्ध, उदय और संक्रमके परस्थान अल्पबहुत्व और स्वस्थान अल्पबहुत्वका अनुन्धान करके अब फिर भी स्वस्थान अल्पबहुत्वको स्पष्ट करनेके लिए चौथी मूल गाथाका अवतार करते हैं
* अब चौथी मूलगाथाका अवतार करते हैं । $ २९३. यह सूत्र सुगम है।
वह जैसे। ६ २९४. यह सूत्र सुगम है।
(९४) वर्तमान समयकी अपेक्षा उत्तरोत्तर तदनन्तर-तदनन्तर समयमें होनेवाला बन्ध, संक्रम और उदय अपने-अपने स्थानमें स्वस्थानकी अपेक्षा क्या अधिक होता है, हीन होता है या समान होता है ॥१४७।।
६२९५. यह चौथी मूलगाथा अनुभाग और प्रदेशविषय बन्ध, उदब और संक्रमके स्वस्थान अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिये आयी है।
शंका-वह कैसे? समाधान-वर्तमान समयमें होनेवाले बन्ध, संक्रम और उदयकी अपेक्षा तदनन्तर समयमें