Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
पाणविस पुणो विणिण्णय करणट्टमुवरिममप्पाबहुअपबंधमाढवेइ—
* जहण्णच णिक्खेवो थोवो |
९ ३३०. किं कारणं १ समयूणावलियतिभागस्स समयाहियस्स गहणादो । तस्स पमाणं संदिट्ठीए एत्तियमिदि घेतव्वं ६ ।
* जहण्णिया अइच्छावणा समयूणाए आवलियाए वेत्तिभागा विसे साहिया ।
$ ३३१. जहण्णाइच्छावणा समयूणावलियवे - त्तिभागपमाणा होदूण समयाहियतिभागादो पुव्विल्लादो विसेसाहिया त्ति भणिदं होदि । तत्तो दुरूवूणदुगुणपमाणतादो । तिस्से पमाणं संदिट्ठीए एत्तियमेत्तमिदि घेत्तव्वं १० ।
* उक्कस्सिया अइच्छावणा विसेसाहिया ।
९ ३३२. कुदो ? संपुण्णावलियपमाणत्तादो १६ ।
* उक्कस्सआ णिक्खेवो असंखेज्जगुणो ।
$ ३३३. कुदो ? समयाहियदोआवलियूणकम्मट्ठिदिपमाणत्तादो । एवमेदीए पढमभासगाहाए मूलगाहापुव्वद्धो विहासिदो होदि । णवरि अणुभागविसयोकडणाए उत्कृष्ट अतिस्थापना और निक्षेपके प्रमाणके विषय में फिर भी निर्णय करनेके लिये आगेके अल्पबहुत्वप्रबन्धको आरम्भ करते हैं
* जघन्य निक्षेप सबसे अल्प है ।
$ ३३०. क्योंकि एक समय कम आवलिके तीन भाग करके एक समय अधिक उस त्रिभागको निक्षेपरूपमें ग्रहण किया है । उसका प्रमाण अंकसंदृष्टिसे इतना अर्थात् ६ ग्रहण करना चाहिये । * जघन्य अतिस्थापना एक समय कम आवलिके दो त्रिभागप्रमाण होकर विशेषाधिक है ।
$ ३३१. जघन्य अतिस्थापना एक समय कम एक आवलिके दो- त्रिभागप्रमाण होकर एक समय अधिक त्रिभागप्रमाण पूर्वोक्त जघन्य निक्षेपसे विशेष अधिक है यह उक्त कथनका तात्पर्य, क्योंकि यह जघन्य अतिस्थापना जघन्य निक्षेपसे दो कम द्विगुणप्रमाण है । उसका प्रमाण संदृष्टिकी अपेक्षा इतना अर्थात् १० ग्रहण करना चाहिये ।
* उत्कृष्ट अतिस्थापना विशेष अधिक है ।
$ ३३२. क्योंकि यह सम्पूर्ण एक आवलिप्रमाण है। जिसका प्रमाण अंक संदृष्टिकी अपेक्षा १६ है ।
* उत्कृष्ट निक्षेप असंख्यातगुणा है ।
$ ३३३. क्योंकि यह एक समय अधिक दो आवलिसे हीन उत्कृष्ट कर्मस्थितिप्रमाण है । इस प्रकार इस प्रथम भाष्यगाथा द्वारा मूलगाथाके पूर्वार्धकी विभाषा सम्पन्न होती है । इतनी