Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 392
________________ खवगसेढीए अपुवफद्दयपरूवणा ३५१ मागहारमेत्तफालीओ तत्थेव दृविय एगफालिं घेत्तूण पुध दुविदे तमवणिदफालिपमाणमपुव्वफद्दयाणि करेमाणेणोकड्डिदसयलसव्वमेत्तं होदि । ६४८५. पुणो एस फाली आयामेण अपुव्वफद्दयागमणटुं गुणहाणीए जो भागहारो ओकड्डुक्कडणभागहारादो असंखेज्जगुणो तेण दुभागब्भहियेण खंडेयव्वा । एवं खंडिदे तत्थेगेगखंडायामो अपुन्वफद्दयद्धाणमेत्तो होदि । तत्थ रूवूणोकड्डुक्कड्डणमागहारमत्तेसु खंडेसु पुग्विल्लखेत्तस्स हेट्ठा समयाविरोहेण संधिदेसु पुव्वफद्दयादिवग्गणाए सह अपुव्वफद्दयसयलवग्गणाओ सरिसपमाणेण समुप्पण्णाओ। णवरि एत्थ अपुव्वफद्दयवग्गणद्धाणसंकलणमेत्तवग्गणविसेसेहिं विणा गोवुच्छायारो ण समुप्पज्जदि त्ति तेत्तियमेत्तं पि दव्वमवसेसखंडेहिंतो घेत्तण समयाविरोहेणेत्थ पक्खिवियव्वं । एदं पुण संकलणदव्वमप्पहाणं, एयखंडदव्वस्सासंखेज्जदिभागपमाणत्तादो। पुणो रूवणोकड्डुक्कड्डणभागहारमेत्तखंडेहिं परिहीणदिवड्डभागहारमेत्तसेसखंडाणि सव्वाणि पुव्वापुव्वफद्दएसु विहंजियण पदंति त्ति घेत्तव्वं । तं कधं ? सेसखंडेसु एयखंडपमाणं घेत्तूण पुणो पुव्वत्तमेयपदेसगुहाणिहाणंतरभागहारं दुभागन्भहियं रूवाहियं विरलेयण समखंड कादण दिण्णे एक्केक्कस्स रूवस्स अपुव्वफद्दयायामो पावदि । तत्थेयरूवधरिदफालिं घेत्तूण अपुव्वफद्दयसयलखंडाणं फासे ढोएयव्वं । पुणो सेससव्वरूवधरिदबहुखंडाणि एक फालिको ग्रहण करके पृथक् स्थापित करनेपर उस पृथक् निकालकर रखी गई फालिका जितना प्रमाण है उतने अपूर्व स्पर्धक करनेपर अपकर्षित किये गये द्रव्यका प्रमाण होता है। ४८५. पुनः इस फालिको, आयामकी ओरसे अपूर्व स्पर्धकोंको लानेके लिये गुणहानिका अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे असंख्यातगुणा जो भागहार है द्वितीय भाग अधिक उससे, भाजित करना चाहिये। इस प्रकार भाजित करनेपर वहाँ एक-एक खण्डका आयाम अपर्व स्पर्घकोंके अध्वानप्रमाण होता है। वहाँ एक कम अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारप्रमाण खण्डोंमें पूर्वके क्षेत्रके नीचे आगमके अविरोधपूर्वक जोड़ देनेपर पूर्व स्पर्धककी आदि वर्गणाके साथ अपूर्व स्पर्धककी समस्त वर्गणाएँ सदृश प्रमाणरूपसे उत्पन्न हो जाती हैं। इतनी विशेषता है कि ऐसा करनेपर अपूर्व स्पर्धककी वर्गणाओंका जो अध्वान है उसके संकलनप्रमाण वर्गगाविशेषोंके बिना गोपुच्छाकार नहीं उत्पन्न होता है, इसलिए तत्प्रमाण द्रव्यको शेष खण्डोंमेंसे ग्रहण करके आगमके अविरोधपूर्वक इसमें मिला देना चाहिये । परन्तु यह संकलनरूप द्रव्य अप्रधान है, क्योंकि यह एक खण्डप्रमाण द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। पुनः एक कम अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारप्रमाण खण्डोंसे रहित डेढ़ भागहारप्रमाण शेय सब खण्ड पूर्व और अपूर्व स्पर्धकोंमें विभक्त होकर पतित होते हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिये। शंका-वह कैसे? समाधान-शेष खण्डोंमेंसे एक खण्डके प्रमाणको ग्रहण करके पुनः द्वितीय भाग अधिक एक प्रदेशगुणहानि स्थानान्तरभागहारको रूपाधिक करनेके बाद उसे विरलन करके तथा सदृश खण्ड करके देयरूपसे देनेपर एक-एक रूपके प्रति अपूर्व स्पर्धर्कोका आयाम प्राप्त होता है। उसमेंसे एक रूपके प्रति प्राप्त फालिको ग्रहण कर उसे अपूर्व स्पर्धकके समस्त खण्डोंके पासमें लाकर स्थापित करना चाहिये । पुनः शेष सब रूपोंके प्रति प्राप्त बहुत खण्ड पूर्व स्पर्धकोंमें पतित

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