Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 402
________________ ३६१ * तदो विदियाए वग्गणाए विसेसहीणं दिज्जदि । तत्तो पाए अनंतरोवणिधाए सव्वत्थ विसेसहीणं दिज्जदि । पुत्र्वफद्दयाणमादिवग्गणाए विसेसहीणं दिज्जदि । सेसासु वि विसेसहीणं दिज्जदि । अस्सकण्णकरणपरूवणा $ ५०५. पुव्वापुव्वफद्दएस एगगोवुच्छसंपायणनिमित्तमेवंविहं पदेसणिक्खेवमेत्थ कुदित्ति घेत्तव्वं । सेसं सुगमं । एवं ताव विदियसमए दिज्जमाणयस्स पदेसग्गस्स सेढिपरूवणं काढूण संपहि तत्थेव दिस्समानपदेसग्गस्स सेढिपरूवणमुत्तरो सुत्तपबंधो— * विदियसमये अपुव्वफद्दयसु वा पुव्वफद्दएस वा एक्केक्किस्से वग्गणाए जं दिस्सदि पदेसग्गं तमपुत्र्वफद्दयआदिवग्गणाए बहुअं । सेसासु तवणिधाए सव्वासु विसेसहीणं । $५०६. कुदो ? पुन्वापुव्यफद्दएस एगगोवुच्छे संजादे तत्थ दिस्समाणपदेसग्गस्स अणंतराणंतरादो विसेसहीणत्तं मोत्तूण पयारंतरासंभवादो । संपहि तदियसमयपडिबद्धं परूवणं कुणमाणो उवरिमसुत्तपबंधमाह - * तदियसमए वि एसेव कमो' । णवरि अपुब्वफद्दयाणि ताणि च करते हैं * उससे दूसरी वर्गणा में विशेषहीन प्रदेशपुंज देता है । पुनः वहाँसे लेकर अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा सर्वत्र क्रमसे विशेषहीन विशेषहीन देता है । फिर पूर्व स्पर्धकोंकी आदि वर्गणा में विशेषहीन देता है । तदनन्तर शेष वर्गणाओं में विशेष - to विशेषहीन देता है । $५०५. पूर्व और अपूर्व स्पर्धकों में एक गोपुच्छाके सम्पादनके लिये यहाँपर इस प्रकार प्रदेशरचना करता है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये । शेष कथन सुगम है । इस प्रकार सर्वप्रथम दूसरे समय में दिये जानेवाले प्रदेशपु जकी श्रेणिप्ररूपणा करके अब वहींपर दिखाई देनेवाले प्रदेशपु ंजकी श्रेणिप्ररूपणा करनेके लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है— * दूसरे समय में अपूर्व स्पर्धकों तथा पूर्व स्पर्धकों सम्बन्धी एक-एक वर्गणा में जो प्रदेशपुंज दिखाई देता है वह अपूर्व स्पर्धककी आदि वर्गणा में बहुत होता है । शेष सब वर्गणाओं में अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा उत्तरोत्तर विशेष हीन होता है । $ ५०६. क्योंकि पूर्व और अपूर्व स्पर्धकोंकी एक गोपुच्छा बन जानेपर वहाँ दिखनेवाले प्रदेश में अनन्तर तदनन्तररूपसे विशेष होनपनेको छोड़कर अन्य कोई प्रकार सम्भव नहीं है । अब तोसरे समय से सम्बन्ध रखनेवाली प्ररूपणाको करते हुए आगे के सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * तीसरे समयमें भी यही क्रम है । इतनी विशेषता है कि उस समय उन्हीं १. ता०प्रतौ कमा इति पाठः । ४६

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