Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 391
________________ ३५० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे विसेसहीणं देदि । सेसासु सव्वासु पुव्वफयवग्गणासु विसेसहीणं देदि । $ ४८३. एत्थ ताव पुव्वफद्दयाणमादिवग्गणाए णिवदमाणदव्वस्सासंखेज्जगुणहीणत्ते कारणपरूवणं कस्सामो । तं जहा-अपुव्वफद्दयाणं चरिमवग्गणाए णिवदिददव्वं पुव्वफद्दयादिवग्गणादो एयवग्गणविसेसमेत्तेणब्भहियं होइ । संपहि पुव्वफद्दयादिवग्गणाए णिवदमाणं दव्वं तत्थ पुवावद्विददव्वस्सासंखेज्जदिभागमेत्तं चेव होदि, ओकट्टिदसयलदव्वस्सासंखेज्जेसु भागेसु गदेसु दिवढ्ढगुणहाणीए ओवट्टिदेसु सादिरेयओकड्डुक्कड्डणभागहारेणादिवग्गणाए खंडिदाए तत्थेयखंडमेत्तस्सेव दव्वस्सागमणदंसणादो । ४८४. संपहि एदस्सेवत्थस्स खेत्तविण्णासमुहेण फुडीकरणं कस्सामो । तं जहा-पुत्रफद्दयादिवग्गणपमाणेण सयलदव्वे कीरमाणे दिवड्डगुणहाणिमेत्तीओ आदिवग्गणाओ होति त्ति तासिं खेत्तविण्णासो एवं ठवेयव्वो एवमादिवग्गणविक्खंभेण दिवड्डगुणहाणिआयामेण च खेत्तमेदं ठविय पुणो विक्खंभेण ओकड्डक्कड्डणभागहारमेत्तीओ फालीओ कायव्वाओ। एवं कादूण तत्थ रूवूणोकड्डुक्कड्डणभागहारमेत्तीओ फालीओ कायवाओ। एवं कादण तत्थ रूवणोकड्डुक्कडणविशेष हीन प्रदेशपुंज देता है। इस प्रकार पूर्व स्पर्धककी शेष सब वर्गणाओंमें उत्तरोत्तर विशेष हीन विशेष हीन प्रदेशपुंज देता है। ४८३. यहाँ सर्वप्रथम पूर्व स्पर्धककी आदि वर्गणामें निक्षिप्त होनेवाला द्रव्य असंख्यातगुणा हीन होता है इसके कारणका कथन करेंगे। यथा-अपूर्व स्पर्धकोंकी अन्तिम वर्गणामें निक्षिप्त होनेवाला द्रव्य पूर्व स्पर्धककी आदि वर्गणासे एक वर्गणा विशेषमात्र अधिक होता है । तथा पूर्व स्पर्धककी आदि वर्गणामें निक्षिप्त होनेवाला द्रव्य वहाँ पूर्व अवस्थित द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होता है, क्योंकि डेढ़ गुणहानिसे भाजित अपकर्षित समस्त द्रव्यसम्बन्धी असंख्यात बहुभागके व्यतीत होनेपर साधिक अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारके द्वारा आदि वर्गणाके खण्डित करनेपर वहाँ एक भागमात्र द्रव्यका ही आगमन देखा जाता है। ६४८४. अब इसी अर्थको क्षेत्रविन्यास द्वारा स्पष्ट करेंगे। वह जैसे-पूर्व स्पर्धाककी आदि वर्गणाके प्रमाणसे समस्त द्रव्यके करनेपर डेढ़ गुणहानिप्रमाण आदि वर्गणाएँ उत्पन्न होती हैं, इसलिये उनके क्षेत्रकी रचना इस प्रकार स्थापित करनी चाहिये इस प्रकार आदि वर्गणाके विष्कम्भरूप और डेढ़ गुणहानिके आयामरूप इस क्षेत्रको स्थापित करके पुनः विष्कम्भकी ओरसे अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारप्रमाण फालियाँ करनी चाहिये । इस प्रकार करके उनमेंसे एक कम भागहारप्रमाण फालियोंको वहीं स्थापित करके तथा शेष रही १. आप्रतौ भागेसु दिवड्ढ- इति पाठः ।

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