Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 356
________________ खवगढीए सत्तममूलगाहाए तदियभासगाहा * उक्कस्सयमणुभागसंतकम्मं बंधो च विसेसाहिओ । ४१८. केत्तयमेत्तो विसेसो ? अणुभागखंडयादो हेट्टिमाणंतिमभागमेत्तो । तदो एवंविहेण अप्पात्रहुअविहाणेण परिच्छिण्णपमाणजहण्णा इच्छावणणिक्खेवमेत्तफद्दयाणि मोत्तूण आवलियपविट्टसव्वफद्दयाणि च मोत्तूण सेसासेसफद्दयाणि ओकड्डदि उक्कड्डदि चेदि एसो गाहासुत्तस्स भावत्थो । $ ४१९. एवं विदियभासगाहाए अत्थविहासं समानिय संपहि तदियभासगाहाए अत्थविहासणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ - * एत्तो तदियभासगाहाए समुक्कित्तणा विहासा च । $ ४२०. सुगमं । (१०७) वड्डीदु होदि हाणी अधिगा हाणीदु तह अवट्ठाणं । गुणसेढि असंखेज्जा च पदेसग्गेण बोद्धव्वा ।। १६० ।। ३१५ * इससे उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म और बन्ध विशेष अधिक है । $ ४१८. विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान - अनुभाग काण्डकसे नीचेके अनन्तवें भागप्रमाण विशेषका प्रमाण है । इसलिये इस प्रकारके अल्पबहुत्वके विधानके अनुसार परिच्छिन्न प्रमाणवाले जघन्य अतिस्थापना और जघन्य निक्षेपप्रमाण स्पर्धकों को छोड़कर तथा आवलिके भीतर प्रविष्ट हुए सब स्पर्धकोंको छोड़कर शेष सब स्पर्धकोंको अपकर्षित करता है और उत्कर्षित करता है यह इस गाथा सूत्रका भावार्थ है । विशेषार्थ – उदयावलिमें प्रविष्ट हुए स्पर्धकोंका न तो अपकर्षण ही होता हैं और न उत्कर्षण ही, इसलिए इस कामके लिए एक तो इनको छोड़ देना चाहिये । दूसरे आदिके अनुभागस्पर्धकसे लेकर जितने स्पर्धक क्रमसे जघन्य निक्षेप और जघन्य अतिस्थापनारूप हैं उन्हें छोड़ देना चाहिये। उनके ऊपर के सभी स्पर्धकों का अपकर्षण हो सकता है । तथा इसी प्रकार अन्तिम स्पर्धकसे लेकर जितने स्पर्धक जघन्य निक्षेप और जघन्य अतिस्थापनारूप हैं उन्हें छोड़कर तथा नीचे एक आवलिके भीतर प्रविष्ट हुए स्पर्धकोंको छोड़कर इनसे ऊपरके सभी स्पर्धकोंका उत्कर्षण हो सकता है । यहाँ व्याघातविषयक उत्कर्षणकी प्ररूपणामें जो विशेषता है उसे अलगसे जान लेना चाहिये । $ ४१९. इस प्रकार दूसरी भाष्यगाथाके अर्थकी विभाषा करके अब तीसरी भाष्यगाथाके अर्थी विभाषा करते हुए आगे सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * आगे तीसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना और विभाषा करते हैं । $ ४२०. यह सूत्र सुगम है । (१०७) वृद्धिसे हानि अधिक होती है तथा हानिसे अवस्थान अधिक होता है । यह अधिकका प्रमाण उत्तरोत्तर प्रदेशपु जकी अपेक्षा असंख्यातगुणी श्रेणिरूप से जानना चाहिये || १६० ॥

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