Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 373
________________ ३३२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पुणो सव्वधादिजहण्णफद्दयमादि कादणाणंताणि फद्दयाणि उवरि गंतूण तत्थ सम्मामिच्छत्तफद्दयाणि समप्पंति, दारुअसमाणाणंतिमभागविसए चेव तेसिं सबपादिसरूवेण पारंभपज्जवसाणदंसणादो। तदो सम्मामिच्छत्तचरिमफद्दयस्सुवरिमतदणंतरफद्दयमादि कादण मिच्छत्तस्साणुभागविण्णासो होइ जाव पज्जवसाणफद्दये त्ति । तम्हा मिच्छत्तं मोत्तण सेसाणं सव्वघादीणमादिवग्गणाओ सरिसीओ ति णिद्दिष्टुं । $ ४५२. एवमवद्विदेसु पुव्वफद्दएसु तत्थ चदुण्डं संजलणाणं पुन्वफद्दएहितो पदेसग्गमोकड्डियूण तेसिं चेव सव्वजहण्णपुव्वफद्दयाणि वग्गणाहितो हेट्ठा अणंतिममागे अणंताणि अपुव्वफद्दयाणि एसो पढमसमयअस्सकण्णकरणकारगो णिवत्तेदुमाढवेदि त्ति एसो एदस्स भावत्थो । संपहि एदस्सेव फुडीकरणहमिदमाह--- * तदो चदुग्हं संजलणाणमपुव्वफदयाई णाम करेदि । ६४५३. तदो पुव्वफद्दयाणं सव्वजहण्णफद्दयस्स आदिवग्गणादो हेट्ठा पदेसग्गमणंतगुणहीणाणुभागसरूवेणोकड्डियूण चदुण्हं संजलणाणमपुव्वफद्दयाणि करेदि त्ति मणिदं होदि । * ताणि कधं करेदि ? 5 ४५४. ताणि अपुव्वफद्दयाणि करेमाणो कधं णाम पुव्वफद्दएहितो है। इस प्रकार होकर पुनः सर्वघाति जघन्य स्पर्धकसे लेकर अनन्त स्पर्धक ऊपर जाकर वहाँ सम्यग्मिथ्यात्वके स्पर्धक समाप्त होते हैं, क्योंकि दारुसमान अनन्तवें भागमें ही उनकी सर्वघातिरूपसे आदि और समाप्ति देखी जाती है। उसके बाद सम्यरिमथ्यात्वके अन्तिम स्पर्धकसे उपरिम प्रथम स्पर्धकसे लेकर अन्तिम स्पर्धकके प्राप्त होनेतक मिथ्यात्वके अनुभागकी रचना होती है, इसलिये मिथ्यात्वको छोड़कर शेष सर्वघाति स्पर्षकोंकी आदिवर्गणा सदृश होती है यह निर्देश किया गया है। ४५२. इस प्रकार पूर्वस्पर्घकोंके अवस्थित रहते हुए वहाँ चार संज्वलनोंके पूर्वस्पर्धकमेंसे प्रदेशजको अपकर्षित कर पूर्वस्पर्धकोंकी सबसे जघन्य वर्गणासे नीचे उनके अनन्तवें भागप्रमाण अपूर्नस्पर्धकोंकी यह प्रथम समयवर्ती अश्वकर्णकरणको करनेवाला जीव रचना करनेके लिए आरम्भ करता है। अब इसी अर्थको स्पष्ट करनेके लिए इस सूत्रको कहते हैं * उनमेंसे चार संज्वलनोंके अपूर्व स्पर्धकोंको करता है। $ ४५३. तदो अर्थात् पूर्वस्पर्धकोंके सबसे जघन्य स्पर्धकको आदिवर्गणासे नीचे प्रदेशाग्रको अनन्तगुणे हीन अनुभागरूपसे अपकर्षित कर चार संज्वलनोंके अपूर्वस्पर्धाकोंको करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। * उनको कैसे करता है ? ६४५४. उन अपूर्वस्पर्धकोंको करनेवाला जीव पूस्पर्धकोंमेंसे प्रदेशाग्रके कितने भागको

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