Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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पढमसमए णिवत्तिदअपुव्वफद्दयपरूवणा
पदेसग्गस्स कइत्थं मागमोकड्डियूण पुव्वफद्दयाणुभागस्स कइत्थए भागे किंप्रमाणाणि ताणि णिब्बत्तेदि ति पुच्छिदं होदि । एवं पुच्छाविसईकयाणं तेसिं लोभादिसंजलणेसु जहाकमं परूवणं कुणमागो उत्तरं पबंधमाह -
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* लोभस्स ताव, लोहसंजलणस्स पुव्वफद्दहिंतो पदेसग्गस्स असंखेज्जदिभागं घेत्तण पढमस्स देसघादिफद्दयस्स हेट्ठा अनंतभागे अण्णाणि अपुव्वफद्दयाणि णिव्वत्तयदि ।
१४५५. चदुहं कसायाणमक्कमेणेसो पढमसमयअवेदो अपुब्वफद्दयाणि णिव्वत्तेदि । किंतु तेसिं सव्वेसिं जुगवं वोत्तुमसक्कियत्तादो लोभस्स ताव अपुव्वफद्दयकरणविहाणं वत्तइस्लामो चि जाणावणङ्कं 'लोभस्स तावेत्ति' मणिदं । ताणि च करेमाणो एदेण विहाणेण करेदित्ति जाणावणङ्कं सेससुत्तावयवणिद्देसो । तं कथं ? लोभसंजलणस्स पुव्वफद्दएहिंतो अपुव्वफद्दयकरणङ्कं पदेसग्गस्सा संखेज्जदिभागमोकड्डदि, दिवडुगुणहाणिमेत्तसमयपबद्धाणं पुव्वफद्दयसु जहापविभागमवट्ठिदाणमोकड्डुक्कड्डणभागहारपडि भागेण संखेज्जदिभाग मोकड्डियूण गेण्डदि त्ति भणिदं होदि । तं च पदेसग्गं घेत्तूण पुव्वफद्दयाणं पढमस्स देसघादिफद्दयस्स हेट्ठा अनंतगुणहाणीए ओवट्टियूण तदणंतिमभागे अपुव्वफद्दयाणि णिव्वत्तेदि । पढमस्स
अपकर्षित कर पूर्व स्पर्धकसम्बन्धी अनुभागके कितने भागमें कितने प्रमाणमें उन अपूर्वस्पर्धकोंकी रचना कैसे करता है यह उक्त सूत्र द्वारा पृच्छा की गई है । इस प्रकार पृच्छाके विषयरूपसे स्वीकृत उनकी लोभादि संज्वलनोंमें क्रमसे प्ररूपणा करते हुए आगेके प्रबन्धको कहते हैं
* लोभ संज्वलनकी अपेक्षा सर्वप्रथम कहते हैं -- लोभ संज्वलन के पूर्व स्पर्धकों मेंसे प्रदेशाग्र के असंख्यातवें भागको ग्रहण कर प्रथम देशघादि स्पर्धक के नीचे अनन्तवें भागमें अन्य अपूर्व स्पर्धकोंको करता है ।
४५५. यह प्रथम समयवर्ती अवेदक क्षपक जीव यद्यपि चारों कषायोंके अक्रमसे अपूर्व - स्पर्धकोंकी रचना करता है । किन्तु उन सबका एक साथ कथन करना अशक्य है, इसलिये सर्वप्रथम लोभसंज्वलन के अपूर्व स्पर्धकोंके विधानको बतलावेंगे इस बातका ज्ञान करानेके लिए 'लोभस्स ताव' यह वचन कहा है । उन अपूर्वं स्पर्धकोंको करता हुआ इस विधिसे करता है इस बातका ज्ञान करानेके लिए शेष सूत्रवचनोंका निर्देश किया है ।
शंका- वह कैसे ?
समाधान — लोभसंज्वलन के पूर्व स्पर्धकोंमेंसे अपूर्व स्पर्धकों को करनेके लिए प्रदेशाग्रके असंख्यातवें भागका अपकर्षण करता है, क्योंकि डेढ़ गुणहानिप्रमाण जो समय प्रबद्ध पूर्वस्पर्धकों में अपने विभागके अनुसार अवस्थित हैं उनमें अपकर्षण- उत्कर्षणभागहारका भाग देनेपर जो असंख्यातवाँ भाग लब्ध आवे उतनेको अपकर्षित कर ग्रहण करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । और उस प्रदेश को ग्रहण कर पूर्वस्पर्धकोंके देशघातिस्पर्धक के नीचे अनन्त गुणहानिद्वारा