Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे फद्दयाणि । ण च किडीगदस्साणुभागस्स कमवड्डि-हाणिसंभवो अत्थि, तत्थाणंतगुणवड्डि-हाणीओ मोत्तणाविभागपडिच्छेदुत्तरकमवड्डि-हाणीणमणुवलंभादो। तम्हा पुव्वफद्दयाणुभागादो अणंतगुणहीणसत्तिसमण्णिदाणि किट्टिअणुभागादो च अणंतगुणसत्तिसंजुत्ताणि होद्ण जाणि कमवड्ढिहाणिलक्खणोवलक्खियाणि तेसिमपुव्वफद्दयसण्णा त्ति सिद्धं ।
$ ४४८ संपहि एवं लक्खणाणमपुव्वफद्दयाणमस्सकण्णकरणपढमसमयादो आढविय परूवणं कुणमाणो उवरिमं सुत्तपबंधमाह
* तेसिं परूवणं वत्तइस्सामो । ६४४९. सुगममेदं पयदपरूवणाविसयं पइण्णावक्कं । * तं जहा।
४५०. सुगममेदं पि पुच्छावक्कं । संपहि अपुव्यफद्दयाणं परूवणं कुणमाणो पुव्वं ताव पुव्वफद्दयाणमवट्ठाणक्कमजाणावणमुत्तरसुत्तं मणइ, तेसिमवट्ठाणक्कमे
समाधान-जहाँ अविभागप्रतिच्छेदके उत्तर क्रमसे वृद्धि और हानि सम्भव है वे स्पर्धक हैं । परन्तु कृष्टिगत अनुभागमें क्रमवृद्धि और क्रमहानि सम्भव नहीं हैं, क्योंकि उनमें अनन्तगुणवृद्धि और अनन्तगुणहानिको छोड़कर अविभागप्रतिच्छेदके उत्तरक्रमसे वृद्धि और हानि नहीं उपलब्ध होती। इसलिए पूर्व स्पर्धकोंसे अनन्तगुणी हीन शक्तिसे युक्त और कृष्टिके अनुभागसे अनन्तगुणी शक्तिसे युक्त होकर जो क्रमवृद्धि और क्रमहानिरूप लक्षणसे उपलक्षित होते हैं उनको अपूर्व स्पर्धक संज्ञा है यह सिद्ध हुआ।
___ विशेषार्थ-अनुभागशक्तिके समान अविभागप्रतिच्छेदोंको धरनेवाले प्रत्येक परमाणुका नाम वर्ग है । और ऐसे अनन्त परमाणुओंके समुदायका नाम एक वर्गणा है। पुनः एक अधिक अविभागप्रतिच्छेदको धरनेवाले अनन्तपरमाणुओंका नाम दूसरी वर्गणा है । इस प्रकार एक-एक अधिक अविभागप्रतिच्छेदके क्रमसे अनन्त वर्गणाएँ मिलकर एक स्पर्धक कहलाती हैं। अनुलोम क्रमसे देखनेपर इसमें अविभागप्रतिच्छेदके उत्तरक्रमसे वृद्धि दिखाई देती है और विलोमक्रमसे देखनेपर इसमें अविभागप्रतिच्छेद उत्तरक्रमसे हानि दिखाई देती है। यह स्पर्धकका लक्षण है। कृष्टियोंमें यह लक्षण घटित नहीं होता, क्योंकि उनमें एक कृष्टिसे दूसरी कृष्टिमें फलदानशक्तिकी अनन्तगुणी हानि देखी जाती है । शेष कथन सुगम है।
$ ४४८. अब इस प्रकारके लक्षणवाले अपूर्व स्पर्धकोंको अश्वकर्णकरणके प्रथम समयसे आरम्भ करता है, अतः उनकी प्ररूपणा करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* अब उनकी प्ररूपणाको बतलावेंगे । $ ४४९. प्रकृत प्ररूपणाको विषय करनेवाला यह प्रतिज्ञावाक्य सुगम है ।
ॐ वह जैसे ।
$ ४५०. यह पृच्छावाक्य भी सुगम है। अब अपूर्व स्पर्धकोंकी प्ररूपणा करते हुए सर्वप्रथम पूर्व स्पर्धकोंके अवस्थान क्रमका ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रको कहते हैं, क्योंकि उनके