Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसैढौए पंचममूलगाहाए विदियभासगाहा
जहण्णुक्कस्साइच्छावणाणिक्खेवपमाणाणुगमो डिदि - अणुभागाणमुक्कडणाविसयजहण्णुक्कस्सा इच्छावणाणिक्खेवविचारो च उवरिममूलगाहासु पबंघेण परूविज्जिहिदि ति चुण्णित्तयारेणेत्थ ण परूविदो । संपहि 'णिरुवक्कमा च वड्डी' इच्वेदस्स मूलगाहापच्छद्धस्स विवरणङ्कं विदियभासगाहाए अवयारं कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* विदियाए गाहाए समुक्कित्तणा ।
$ ३३४. सुगमं ।
* जहा ।
९ ३३५. सुगमं ।
(१००) संका मेदुक्कडुदि जे अंसे ते अवट्टिदा होंति । आवलियं से काले तेण परं होंति भजियव्वा ॥ १५३ ॥
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$ ३३६. एसा विदियभासगाहा परपयडीसु संकामिदपदेसग्गस्स द्विदि-अणुभागेहिं उक्कट्टिदस्स च आवलियमेत्तकालं णिरुवक्कम भावेणावद्वाणं होदि ति इममत्थविसेसं जाणावेइ । तं जहा - 'संकामे दुक्कड्डदि ' एवं भणिदे संकामेदि वा उक्कड्डेदि वा जे कम्मपदेसे ते आवलियमेत्तकालमवट्टिदा होंति, आवलियमेत्तकालं किरियंतरपरिणामेण विणा जहा जत्थ णिक्खित्ता तहा चैव तत्थ णिच्चलभावेणावचिट्ठति ति
विशेषता है कि अनुभागविषयक अपकर्षणके जघन्य और उत्कृष्ट अतिस्थापना और निक्षेपके प्रमाणका अनुगम तथा स्थिति और अनुभागसम्बन्धी उत्कर्षणके जघन्य और उत्कृष्ट अतिस्थापना और निक्षेपका विचार आगे मूल गाथाओं में विस्तारसे कहेंगे, इसलिए चूर्णिसूत्रकारने यहाँ उनकी प्ररूपणा नहीं की है । अब 'णिरुवक्कमा च वड्ढी' इस प्रकार मूलगाथा के इस उत्तरार्धका व्याख्यान करनेके लिये दूसरी भाष्यगाथाका अवतार करते हुए आगे सूत्रको कहते हैं
* अब दूसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं । $ ३३४. यह सूत्र सुगम है । * जैसे ।
$ ३३५. यह सूत्र सुगम है ।
(१००) जो कर्मपुंज संक्रमित होता है और उत्कर्षित होता है वह एक आवलिप्रमाण कालतक अवस्थित रहता है । तदनन्तर समयमें वहाँसे लेकर वह संक्रमित और उत्कर्षित होनेवाला कर्मपुंज भजनीय है ॥ १५३ ॥
$ ३३६. यह दूसरी भाष्यगाथा परप्रकृतियोंमें संक्रमित होनेवाले प्रदेशपु 'जका और स्थिति तथा अनुभागरूपसे उत्कर्षित होनेवाले प्रदेशपु ंजका एक आवलि कालतक निरुपक्रमरूपसे अवस्थान होता है इस प्रकार इस अर्थविशेषका ज्ञान कराती है । वह जैसे - 'संकामे दुक्कड्डदि ' इस प्रकार कहनेपर जिन कर्मप्रदेशोंको संक्रमित करता है अथवा उत्कर्षित करता है वे एक आवलिप्रमाण कालतक अवस्थित रहते हैं । एक आवलिप्रमाण कालतक दूसरी प्रकारकी क्रियारूपसे परिणमन